आज जब अनिल जी ने अपनी पोस्ट लिखी तो मुझे लता जी का गाया एक बंगाली गाना याद आ गया. ” एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी”. यह गाना जब पहली बार सुना था तो बहुत कुछ समझ में नहीं आया था लेकिन फिर भी आंखों में आंसू थे. उसके बाद तो यह गाना सैकड़ों बार सुना और हर बार यह मन को द्रवित ही कर गया.
यह गाना लता जी का गाया हुआ है और इस गाने में क्रांतिकारी खुदीराम बोस फाँसी से पहले अपनी माँ से अनुमति मांग रहे हैं. बोल कुछ इस तरह से हैं.
एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी
एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी
हाँसी हाँसी पोरबो फांसी देखबे भारतवासी
आमी ई हाँसी हाँसी पोरबो फांसी देखबे भारतवासी
एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी…..
गाने में संगीत के नाम पर पीछे एकतारा बजता है.बाउल संगीत पर आधारित यह गाना दिल को जैसे तोड़ कर रख देता है.
आप भी सुनिये. (प्ले बटन पर क्लिक करें)
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इसका भाव कुछ इस प्रकार है.
माँ बस एक बार मुझे विदाई दे दे …मैं जरा घूम आऊँ.
मैं हँसते हँसते फाँसी के फन्दे को पहन लुंगा
और सारे भारतवासी देखेंगे.
माँ बस एक बार मुझे विदाई दे दे ..मैं जरा घूम आऊँ.
माँ मैं बम तैयार कर रास्ते के किनारे खड़ा था
मुझे बड़े लाट साहब को मारना था
मैने मार दिया माँ उस इग्लैंड वासी देशद्रोही को
माँ बस एक बार मुझे विदाई दे दे …मैं जरा घूम आऊँ.
शनिवार को दस बजे के बाद जज कोर्ट में जन समूह उमड़ेगा
जब एक ओर अभिराम का दीप जलेगा
तभी खुदीराम को फाँसी हो जायेगी माँ
माँ बस एक बार मुझे विदाई दे दे …मैं जरा घूम आऊँ.
माँ!! तेरे तो तैतीस करोड़ बारह लाख बेटा-बेटी अभी जिन्दा हैं
उनके साथ तू आराम से रहना माँ …बस मुझे जाने की अनुमति दे दे
माँ बस एक बार मुझे विदाई दे दे ….मैं जरा घूम आऊँ
दस माह दस दिन बाद मैं फिर जन्म लुंगा मौसी के घर में
यदि तू मुझे पहचान ना पाये तो देखना मेरे गले में फाँसी का निशान
और मुझे पहचान लेना माँ!!… पहचान लेना
माँ बस एक बार मुझे विदाई दे दे …मैं जरा घूम आऊँ.
कैसा लगा आपको बताइयेगा टिप्पणीयों से.
मैं यह पढ़ रहा हूं उस लेख के बाद जिसमें देवगौड़ा, कुमारस्वामी, चरण सिन्ह, देवी लाल और मनमोहन सिन्ह की वायदा खिलाफी की चर्चा करते हुये भारतीय राजनीति की भारत की जनता और विश्व के समक्ष धूमिल होती साख की बात कही गयी है।
खुदीराम ने इन्ही देवगौड़ा-कुमारस्वामी खातिर कुर्बानी दी!
हम टप्प से खुदीराम को नमन कह आगे सरक लेंगे! क्यों?
भले ही बंगाली सही समझ में ना आई हो परन्तु आपने जो भावानुवाद लिखा है, उससे बहुत समझ में आ गया। गाना सुनने के बास संज्ञाशून्य सी स्थिती है मन की, और ज्ञानजी की टिप्पणी के बाद तो कुछ कहने को नहीं बचा।
मैं एक बार और गाना सुन लेता हूँ।
मां पर लिखना नहीं चाहिए। बोले तो मां अलिख्य विषय है।
मां दरअसल आकाश है,उस पर क्या लिखो,कहां से शुरु करो,कहां खत्म करो, कहां लपेटो।
उस आकाश की छांह में पड़े रहो, लिखने-ऊखने का मामला बेकार है। कित्ता भी लिख लो, आकाश को समेटना संभव कहां है भला।
http://launch.groups.yahoo.com/group/lata_mangeshkar/
काकेश जी,
दीदी का स्वर,हमेशा मुझे बाह्य जगत की सीमा से कहीँ दूर
ले चलता है …
इस अनसुने, अनमोल गीत का दर्द,
साथ रहेगा..
इसे सुनवाने का बहुत बहुत आभार —
आपके ब्लोग का लिन्क “लता दी “के
भक्तोँ के ग्रुप तक पहुँचा दिया है —
— लावण्या
बहुत समय बाद बंगला गीत सुना और वह भी इतना मधुर और इतना भावप्रधान ! धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
The music file is not working. I dont know if the problem is at my end.
राजेश जी,
अब कोशिश करें.