अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट

पड़ौस के पहलवान दुकान की टांग तोड़कर किबला जेल में थे. सब को चिंता थी कि किबला को कहीं जेल ना हो जाये लेकिन किबला हमेशा की तरह बेखबर थे.वो अपनी सजा को कम करवाने के लिये किसी की सिफारिस को भी तैयार ना थे. किबला की इसी मर्दानगी को खोया पानी में बखूबी वर्णित किया गया है. आप भी आनन्द लें.

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अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट

अदालत में फ़ौजदारी मुक़दमा चल रहा था। अनुमान यही था कि सजा हो जायेगी, ख़ासी लम्बी होगी। घर में हर पेशी के दिन रोना-पीटना मचता। दोस्त-रिश्तेदार अपनी जगह हैरान- परेशान कि जरा-सी बात पर यह नौबत आ गयी। पुलिस उन्हें हथकड़ी पहनाये सारे शहर का चक्कर दिला कर अदालत में पेश करती और पहलवान से इस सेवा का मेहनताना वुसूल करती। भोली-भाली बीबी को विश्वास नहीं आता था। एक-एक से पूछतीं ‘भैया! क्या सचमुच की हथकड़ी पहनायी थी?’ अदालत के अन्दर और बाहर क़िबला के तमाम दुश्मनों यानी सारे शहर की भीड़ होती। सारे ख़ानदान की नाक कट गयी मगर क़िबला ने कभी मुंह पर तौलिया और हथकड़ी पर रूमाल नहीं डाला। गश्त के दौरान मूंछों पर ताव देते तो हथकड़ी झन-झन, झन-झन करती। रमजान का महीना आया तो किसी ने सलाह दी कि नमाज़ रोज़ा शुरू कर दीजिये। अपने कान ही पूर के मौलाना हसरत मोहानी तो रोज़े में चक्की भी पीसते थे। क़िबला ने बड़ी हिक़ारत से जवाब दिया ‘लाहौल विला क़ुव्वत! मैं शायर थोड़े ही हूं। यह नाम होगा कि दुनिया के दुख न सह सका।’

बीबी ने कई बार पुछवाया ‘अब क्या होयेगा?’ हर बार एक ही जवाब मिला ‘देख लेंगे।’ क्रोधावस्था में जो बात मुंह से निकल जाये या जो काम हो जाये,उस पर उन्हें कभी लज्जित होते नहीं देखा। कहते थे कि आदमी के अस्ल चरित्र की झलक तो क्रोध के कौंदे में ही दिखायी देती है। इसलिए अपनी किसी करतूत यानी अस्ल चरित्र पर लज्जित या परेशान होने को मर्दों की शान के विरुद्ध समझते थे।

एक दिन उनका भतीजा शाम को जेल में खाना और जुऐं मारने की दवा दे गया, दवा के विज्ञापन में लिखा था कि इसके मलने से जुऐं अंधी हो जाती हैं, फ़िर उन्हें आसानी से पकड़ कर मारा जा सकता है। जूं और लीख मारने की तरकीब भी लिखी थी, यानी जूं को बायें हाथ के अंगूठे पर रखो और दायें अंगूठे के नाखून से चट से कुचल दो। अगर जूं के पेट से काला या गहरा लाल खून निकले तो तुरन्त हमारी दवा अक्सीरे-जालीनूस’-खून साफ़ करने वाली-पी कर अपना खून साफ़ कीजिये। पर्चे में यह निर्देश भी था कि दवा का कोर्स उस समय तक जारी रखिये जब तक कि जूं के पेट से साफ़-सुर्ख़ खून न निकलने लगे। क़िबला ने जंगले के उस तरफ़ से इशारे से भतीजे को कहा कि अपना कान मेरे मुंह के पास लाओ। फ़िर उससे कहा कि बरखुरदार! ज़िंदगी का भरोसा नहीं, संसार इस जेल-समेत नश्वर है। ग़ौर से सुनो, यह मेरा आदेश भी है और वसीयत भी। लोहे की अलमारी में दो हज़ार रुपये आड़े समय के लिये रद्दी अखबारों के नीचे छुपा आया था। रुपया निकाल कर अल्लन (शहर का नामी गुंडा) को दे देना। अपनी चची को मेरी ओर से तसल्ली देना। अल्लन को मेरी दुआ कहना और यह कहना कि छओं को ऐसी ठुकाई करे कि घर वाले सूरत न पहचान सकें। यह कहकर अखबार का एक मसला हुआ पुर्जा भतीजे को थमा दिया, जिसके किनारे पर उन छ: गवाहों के नाम लिखे थे, जिन को पिटवाने की योजना उन्होंने जेल में उस समय बनायी थी जब ऐसी ही हरकत पर उन्हें आजकल में सजा होने वाली थी।

एक बार इतवार को उनका भतीजा जेल में मिलने आया और उनसे कहा कि जेलर तक आसानी से सिफारिश पहुंचायी जा सकती है। अगर आपका जी किसी ख़ास खाने जैसे ज़र्दा या दही बड़े, शौक की मसनवी (एक पुराने शायर का महाकाव्य), सिगरेट या महोबे के पान को चाहे तो चोरी छुपे हफ्ते में कम-से-कम एक बार आसानी से पहुंचाया जा सकता है। चची ने याद करके कहने को कहा है। ईद करीब आ रही है, रो-रो कर उन्होंने आंखें सुजा ली हैं। क़िबला ने जेल के खद्दर के नेकर पर दौड़ता हुआ खटमल पकड़ते हुए कहा, मुझे किसी चीज़ की कोई ज़ुरूरत नहीं। अगली बार आओ तो सिराज फ़ोटोग्राफ़र से हवेली का फ़ोटो खिंचवा के ले आना। कई महीने हो गये देखे हुए। जिधर तुम्हारी चची के कमरे की चिक है उस ओर से खींचे तो अच्छी आयेगी।

संतरी ने ज़मीन पर ज़ोर से बूट की थाप लगाते और थ्री-नाट-थ्री की राइफ़ल का कुन्दा बजाते हुए डपट कर कहा कि मुलाक़ात का समय समाप्त हो चुका। ईद का खयाल करके भतीजे की आंखें डबडबा आयीं और उसने नज़रें नीची कर लीं। उसके होंठ कांप रहे थे। क़िबला ने उसका कान पकड़ा और खींच कर अपने मुंह तक लाने के बाद कहा, हां! हो सके तो जल्दी से एक तेश चाक़ू, कम से कम छ: इंच के फल वाला, डबल रोटी या ईद की सिवैंयों में छुपा कर भिजवा दो। दूसरे, बम्बई में “Pentangular” शुरु होने वाला है। किसी तरकीब से मुझे रोजाना स्कोर मालूम हो जाये तो वल्लाह! हर रोज़ ईद का दिन हो, हर रात शबे-बरात। ख़ास तौर से वज़ीर अली का स्कोर दिन के दिन मालूम हो जाये तो क्या कहना। सजा हो गयी, डेढ़ साल कैदे-बामुशक़्कत (सश्रम कारावास) फैसला सुना, सर उठा कर ऊपर देखा। मानो आसमान से पूछ रहे हों ‘तू देख रहा है! यह क्या हो रहा है?’ How’s that? पुलिस ने हथकड़ी डाली। क़िबला ने किसी प्रकार की प्रतिक्रिया शाहिर नहीं की। जेल जाते समय बीबी को कहला भेजा कि आज मेरे पुरखों की आत्मा कितनी प्रसन्न होगी, कितनी भाग्यशाली हो तुम कि तुम्हारा दूल्हा (जी हां! यही शब्द इस्तेमाल किया था) एक हरामज़ादे की ठुकाई करके मर्दों का ज़ेवर पहने जेल जा रहा है। लकड़ी की टांग लगवा कर घर नहीं आ रहा। दो रक़अत (नमाज़ में खड़े होने, झुकने और माथा टेकने को एक रक़अत कहते हैं) नमाज़ शुकराने (धन्यवाद निवेदन) की पढ़ना। भतीजे को निर्देश दिया कि हवेली की मरम्मत कराते रहना, अपनी चची का खयाल रखना। उनसे कहना, ये दिन भी गुज़र जायेंगे, दिल भारी न करें और जुमे को कासनी दुपट्टा ओढ़ना न छोड़ें।

बीबी ने पुछवाया, ‘अब क्या होयेगा?’

जवाब मिला, ‘देखा जायेगा।’

जारी………………

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पिछले अंक : 1. खोया पानी-1:क़िबला का परिचय 2. ख़ोया पानी 2: चारपाई का चकल्लस 3. खोया पानी-3:कनमैलिये की पिटाई 4. कांसे की लुटिया,बाली उमरिया और चुग्गी दाढ़ी़ 5. हवेली की पीड़ा कराची में 6. हवेली की हवाबाजी 7. वो तिरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है 8. इम्पोर्टेड बुज़ुर्ग और यूनानी नाक 9. कटखने बिलाव के गले में घंटी 10. हूँ तो सज़ा का पात्र, पर इल्ज़ाम ग़लत है

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khoya_pani_front_coverकिताब डाक से मंगाने का पता: 

किताब- खोया पानी
लेखक- मुश्ताक अहमद यूसुफी
उर्दू से हिंदी में अनुवाद- ‘तुफैल’ चतुर्वेदी
प्रकाशक, मुद्रक- लफ्ज पी -12 नर्मदा मार्ग
सेक्टर 11, नोएडा-201301
मोबाइल-09810387857

पेज -350 (हार्डबाऊंड)

कीमत-200 रुपये मात्र

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By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

3 comments

  1. इसमें तो क़िबल हास्य-व्यंग के पात्र नहीं, हीरो लग रहे हैं। भैया उनका जेल में रहना देखा नहीं जा रहा। कब छूटेंगे?

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