महात्मा बुद्ध बिहारी थे

महात्मा बुद्ध बिहारी थे

सेठ ने घोड़े के लंग के बारे में एकदम अज्ञानता व्यक्त की। उल्टा उन्हीं के सर हो गया कि ‘‘तुम घोड़े को देखने हाफ़-डजन टाइम तो आये होगे। घोड़ा तलक तुम को पिछानने लगा था। दस-दफ़े घोड़े के दांत गिने….क्या? तुमने हमको यहां तलक बोला कि घोड़ा नौ हाथ लम्बा हैं उस समय तुम्हें यह नौ-गजा दिखलाई पड़ता था। आज चार-पांच दिन बाद घोड़े के ग़ॉगल्ज ख़ुद पहन के इल्जाम लगाने आये हो….क्या? तीन दिन में तो क़ब्र में मुर्दे का भी हिसाब-किताब बरोबर खल्लास हो जाता है। उस टेम आपको माल में यह डिफ़ेक्ट दिखलायी नहीं पड़ा। तांगे में जोत के ग़रीबख़ाने ले गये तब भी नजर नहीं आया।" बिशारत सेठ के सामने अपने घर को इतनी बार ग़रीबख़ाना कह चुके थे कि वो यह समझा कि यह उनके घर का नाम है।

बिशारत ने कुछ कहना चाहा तो बात काटते हुए बोला-अरे बाबा! घोड़े का कोई पार्ट, कोई पुर्जा ऐसा नहीं बचा, जिसपे तुमने दस-दस दफ़े हाथ नहीं फेरा हो! क्या? तुम बिजनेसमेन हो के ऐसी कच्ची बात मुंह से निकालेगा तो हम किधर को जायेंगा? बोलो जी! हल्कट मानुस के माफ़िक़ बात नहीं करो….क्या?’’ सेठ जिम्मेदारी से बरी हो गया।

बिशारत ने तंग आकर कहा, ‘‘हद तो यह कि सौदा करने से पहले यह भी न बताया कि घोड़ा जनाजा उलट चुका है। आप ख़ुद को मुसलमान कहते हैं’’ सीने पर हाथ रखते हुए सेठ बोला तो क्या तुम्हारे को बुद्धिस्ट दिखलायी पड़ता हूं? हमने जूनागढ़ काठियावाड़ से माइग्रेट किया है….क्या? अपने पास बरोबर सिंध का डोमेसाइल है। महात्मा बुद्ध तो बिहारी था। (अपने मुंह के पान की ओर संकेत करते हुए) मेरे मुंह में रोजी है। तुम भी बच्चों की क़सम खा के बोलो। जब तुमने पूछा-घोड़ा काये को बेच रहे हो, हमने तुरंत बोल दिया। सौदा पक्का करने से पहले पूछते तो हम पहले बोल देते। तुम लकड़ी बेचते हो तो क्या ग्राहक को लक्कड़ की हर गांठ, हर दाग़ पे उंगली रख-रख के बताते हो कि पहले इसे देखो? हम साला अपना व्यापार करे कि तुम्हारे को घोड़े की बयाग्राफ़ी (बायोग्राफ़ी) बताये। फ़ादर मेरे को हमेशा बोलता था कि ग्राहक 420 हो तो पहले देखो भालो, फिर सौदे की टेम बोलो कम, तोलो जियादा। पर तुम्हारे ऊपर तो-खोलो, अभी खोलो!-की धुन सवार थी। तुम्हारे मुंह में पैसे बज रहे थे। गुजराती में कहावत है कि पैसा तो शेरनी का दूध है! इसे हासिल करना और पचाना दोनों बराबर मुश्किल है। पर तुम तो साला शेर को ही दुहना मांगता है । हम करोड़ों का बिजनेस करेला है। आज दिन-तलक जबान दे-के नईं फिरेला। अच्छा अगर तुम क़ुरान पर हाथ रख के बोल दो कि तुम घोड़ा ख़रीदते टेम पियेला था तो हम तुरंत एक-एक पाई रिफ़ंड कर देगा।’’

बिशारत ने मिन्नतें करते हुए कहा ‘‘सेठ, सौ-डेढ़ सौ कम में घोड़ा वापस ले लो। मैं बीबी-बच्चों वाला आदमी हूं। जिंदगी भर अहसानमंद रहूंगा।’’ सेठ आपे-से बाहर हो गया, ‘‘अरे बाबा! ख़च्चर के माफ़िक हमसे अड़ी नईं करो। हमसे एक दम कड़क उर्दू में डायलाग मत बोलो। तुम फ़िलम के विलन के माफ़िक़ गॉगल्ज लगा के इधर काये को तड़ी देता पड़ा हैं। भाई साहब! तुम पढ़ेला मानुस हो। कोई फ़ड्डेबाज मवाली, मल्बारी नईं, जो शरीफ़ों से दादागीरी करे। तुमने साइन-बोर्ड नईं पढ़ा। बाबा! यह री-रोलिंग मिल है। इसटील री-रोलिंग मिल। इधर घोड़े का धन्धा नईं होता…..क्या? कल को तुम बोलेंगा कि तांगा भी वापस ले लो। हम साला अक्खा उम्र इधर बैठा घोड़े-तांगे का धन्धा करेंगा तो हमारा फ़ेमिली क्या घर में बैठा क़व्वाली करेंगा? भाई साब! अपुन का घर तो गिरस्तियों का घर है, किसी बुजुर्ग का मजार नईं कि बाई लोग गज-गज भर के लम्बे बाल खोल के धम्माल डाल दें। धमा धम मस्त क़लन्दर!"

बिशारत ने तांगा स्टील री-रोलिंग मिल के बाहर खड़ा कर दिया और स्वयं एक थड़े पर पैर लटकाये प्रतीक्षा करने लगे कि अंधेरा जरा गहरा हो जाये तो वापस जायें, ताकि नौ घंटे में तीसरी बार चालान न हो। ग़ुस्से से अभी तक उनके कानों की लवें तप रही थीं और हल्क़ में कैक्टस उग रहे थे। बलबन गुलमोहर के पेड़ से बंधा सर झुकाये खड़ा था। उन्होंने पान की दुकान से एक लोमोनेड की गोली वाली बोतल ख़रीदी। एक ही घूंट में उन्होंने अनुमान लगा लिया कि उनकी प्रतीक्षा में यह बोतल कई महीनों से धूप में तप रही थी। फिर अचानक याद आया कि इस परेशानी में आज दोपहर बलबन को चारा और पानी भी नहीं मिला। उन्होंने बोतल रेत पर उंडेल दी और गॉगल्ज उतार दिये।

जारी………………[अब यह श्रंखला प्रत्येक शुक्रवार/शनिवार और रविवार को प्रस्तुत की जा रही है.]

[उपन्यास खोयापानी की तीसरे भाग “स्कूल मास्टर का ख़्वाब से " ]

किताब डाक से मंगाने का पता: 

किताब- खोया पानी
लेखक- मुश्ताक अहमद यूसुफी
उर्दू से हिंदी में अनुवाद- ‘तुफैल’ चतुर्वेदी
प्रकाशक, मुद्रक- लफ्ज पी -12 नर्मदा मार्ग
सेक्टर 11, नोएडा-201301
मोबाइल-09810387857

पेज -350 (हार्डबाऊंड)

कीमत-200 रुपये मात्र

इस भाग की पिछली कड़ियां

1. हमारे सपनों का सच 2. क़िस्सा खिलौना टूटने से पहले का 3. घोड़े को अब घोड़ी ही उतार सकती है 4. सवारी हो तो घोड़े की 5. जब आदमी अपनी नजर में गिर जाये 6. अलाहदीन अष्टम 7. शेरे की नीयत और बकरी की अक़्ल में फ़ितूर

पहला और दूसरा भाग

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

9 comments

  1. आज धन्य हुये! पता चला कि जूनागढ़ी/काठियावाड़ी शेरनी का दूध पीता है। गिर फारेस्ट उसका तबेला है!
    बिहारी शान्ति का अवतार बुद्धिष्ट!
    यह भौगोलिक-सामाजिक ज्ञान हमारी टेक्स्ट-बुक्स नें क्यों न दिया जी?! 🙂

  2. गुजराती में कहावत है कि पैसा तो शेरनी का दूध है! इसे हासिल करना और पचाना दोनों बराबर मुश्किल है। ”
    वाह जी वाह बहुत खूब.
    हम मन से पढ़ रहें है.
    आगे का इंतज़ार है.

  3. “गुजराती में कहावत है कि पैसा तो शेरनी का दूध है! इसे हासिल करना और पचाना दोनों बराबर मुश्किल है। ”
    वाह जी वाह बहुत खूब.
    हम मन से पढ़ रहें है.
    आगे का इंतज़ार है.

  4. यह होती है भाषा की बनक और खनक . यह बोल-चाल की उर्दू-हिंदी नहीं बोलती हुई उर्दू-हिंदी है . मौला बचाए-बनाए रक्खे इस जुबान को . वरना ससुरी सूखे चमड़े-सी सख्त और अलोने खाने-सी बेस्वाद भाषा सुन-सुन कर जी न जाने कैसा-कैसा होने लगता है .

    जूनागढी सेठ की ‘बिजनेस अक्यूमन’, बेहद व्यावहारिक इतिहास-भूगोल ज्ञान और पैसे की शेरनी के दूध से उनकी तुलना ने चारों खाने चित्त कर दिया .

  5. मेरा लिखा मुझ ही को सुनाया जा रहा है; ऐसी धृष्टतता???????/// guuuuuuurrrr!हाआआआअहाआआआआआहाआआआआआ!

    और हाँ, ये ‘धृष्टतता’ टाइप करके दिखाइये! तब समझ में आयेगा कि कितनी कसरत हुई है. खाने का काम नहीं है!

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