दिल्ली की बढ़ती ठंड को देख मुझे इच्छा हुई कि मैं कका से पूछूं कि पहाड़ में जब कड़ाके की ठंड पड़ती थी या बरफ पड़ती थी तो कैसा माहौल होता था और कैसे लोग उस ठंड का सामना करते थे.
क्या बताऊँ भुला… पहाड़ में ठंड तो यहाँ की ठंड से भौते ज्यादा हुई लेकिन वहाँ इस तरह के इनजाम हुए कि इतनी ठंड लगने वाली ही नहीं ठहरी. हां हम जैसे बुड़-बाड़ियों (वृद्ध) के लिये थोड़ी परेशानी होने वाली हुई लेकिन बुड़-बाड़ियों के लिये घर में मेथी के लाड़ू (लड्डू) बन जाने वाले हुए जो ठंड में बहुत काम आने वाले हुए और बुड़बाड़ी एक सगड़ (छोटी अंगीठी) में आग तापते हुए क्वीड़ करने वाले हुए.पीतल के गिलास में गुड़ की टपुक के साथ सुड़ुक सुड़ुक चहा पीने वाले ठहरे. जाड़ों में पुरानी लोहे वाली बाल्टियों को काटकर लोग अंगीठी बना लेने वाले हुए और उसी में कोयले जला लेने वाले हुए.ऑफिसों में भी वही अंगीठी जलने वाली हुई. जाड़ों का खाना भी गरम तासीर वाला हुआ.अधिकतर सब्जियों में भांगा पड़ने वाला हुआ.गडेरी की भांगा डाली हुई सब्जी या लाई की भांगा डाली हुई सब्जी बहुत खायी जाने वाली हुई. घर भी ऎसे हुए कि उनमें उतनी ठंड थोड़े लगने वाली हुई.पटाल की तिरछी छ्त,बड़ी सी खोली, खोली का मोटे लकड़ी वाला दरवाजा,चाख, मिट्टी के फर्श,कम ऊंचाई वाले गोठ.अब ऎसे में ठंड कहां लगने वाली हुई.गोरु-बल्दों के लिये पिरूल बिछा देने वाले हुए गोठ में.
पहनने के लिये बास्कट हुआ और दो टांग का पजामा (इनर) हुआ..टोपी हुई..दस्ताने, ऊनी मौजे , मफलर हुआ.एक मेरा दगड़िया ठहरा पदम सिंह.उसके लिये तो जाड़े और भी अच्छे हुए.उसने तो एक चिलम जलाई. कभी कभी उसमें अत्तर (चरस) भी डाल देने वाला हुआ -अत्तर तो तब घर घर में रहने वाली हुई,आज का जैसा जो क्या ठहरा.लेकिन लोग उसे दवा की तरह इस्तेमाल करने वाले हुए.अत्तर तो कभी कटे-फटे में खून को रोकने के काम आने वाले हुई. हां तो पदमुवा बम बम भोले कहते हुए चिलम पीने वाला हुआ. मेरे से कहने वाला हुआ “दाज्यू एक सूट्टा मारो हो सब ठंड गोल हो जायेगी”. अब पता नहीं उससे ठंड गोल होने वाली हुई या नहीं लेकिन पदम सिंह का कहना हुआ भोलनाथ ज्यू की बूटी है सारी ठंड भगा देती है.
जब भी ह्यूं (बरफ) पड़ने का माहौल होता था उससे पहले कुछ दिनों द्यो (बारिश) होने वाला हुआ. ह्यूं से पहले बजरी जैसी गिरने वाली हुई जिसे बड़े लोग “बरम्याऊ” कहने वाले हुए तब जा के ह्यूं पड़ने वाला हुआ.उस समय माहौल एक दम शांत हो जाने वाला हुआ.आकाश से रुई के गोले जैसे गिरने वाले हुए. धिनाई (ब्याई हुई गाय) तो तब सभी घरों में होने वाली हुई. हम लोग एक कान्से की थाली में थोड़ा मलाई वाला दूध लेकर बाहर रख देने वाले हुए वह जब जम जाने वाला हुआ तो उसे ही खाने वाले हुए. कैसा तो दिखने वाला हुआ पूरा शहर तब.सब कुछ सफेद सफेद हो जाने वाला हुआ.पेड़,पहाड़,जमीन,छ्त सब एक दम सफेद. जैसे सब जगह सफेद चादर बिछी हो. बरफ के रुक जाने पर नानातिना (बच्चे) बरफ के गोले बनाने वाले हुए…एक दूसरे पर फैकने वाले हुए. कोई कोई कलाकार लोग बरफ की मूर्तियां भी बना लेने वाले हुए.ये मुर्तियां पन्द्रह पन्द्रह दिन तक नहीं गलने वाली हुई.
बरफ पड़ने के बाद धूप निकलने वाली हुई.तब ठंडा बढ़ जाने वाला हुआ. लेकिन नौले का पानी उस समय भी गरम लगने वाला हुआ.तब कोई आज की तरह बाथरूम जो क्या हुए.बाहर पटागंण में ही नहाने वाले हुए.हम जनेऊ पहनने वालों को तो नहाना जरूर पड़ने वाला हुआ.बिना नहाये हुए तो खाना ही नहीं खाना ठहरा तो चाहे ह्यूं पड़े चाहे द्यो रोज नहाना हुआ.देवी कवच का पाठ करते करते नहा ही लेने वाले हुए.
तुम लोग तो इस दिल्ली की ठंड से परेशान हो जाते हो.हमने देखी ठहरी यार वो पहाड़ वाली ठंड. तुम तो बस टीवी में ही ह्यूं देखकर कांपने लगते हो. जिसने पहाड़ में रहकर पहाड़ का ह्यूं नहीं देखा क्या देखा. जब हम लोग जवान थे तो एक कमीज पहनके निकल जाने वाले हुए फावड़ा ले के ह्यूं साफ करने.. तब गरम खून हुआ आजकल के छोकरों की तरह थोड़े…
मुझे लगा कि कका अभी अपनी फसक-फराल (गप) शुरु करेंगे तो मुझ समेत मेरी पूरी जनरेशन की ऎसी तैसी करने लगेंगें..इसलिये मैं उन्हे प्रणाम कर वहां से धीरे से कट लिया..कका हीटर में हाथ सेंकते सेंकते पुरानी यादों में खो गये……
अब देखिये इस साल के हिमपात का वीडियो सुभाष कांडपाल जी के सौजन्य से.
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मेरी तो पढ़ कर ही ठंड भाग जाने वाली हुई । और गुड़ के टपुक के साथ सुड़ुक सुडुक के चहा , अहा अहा !
ये ह्यूं की नराई तो बहुत अच्छी लगने वाली हुई……..
Pahar main jab hyon padon tab khoob mousam bhal haii jaan. Aaj dinnan baad yaan Kurukshetraak maidaan main pahari bol sunan hun minly. Dhanyvaad.
बहुत बढ़िया लगा पढ़ना!!
pdhte padhte thand lag rahi hai.gud ki chaha,dadaji ki yaad dil di apne.bahud badhiya poat.
ठंड के दिन ही तो पहाडो में फ़ुर्सत के दिन होते हैं…. वरना वही खेतीबाड़ी, काम धाम और बच्चो के स्कूल…… हम लोग तो बर्फ बारी के बाद लकडियाँ लेने जंगल भागते थे…. बर्फ के बोझ से खूब लकडियाँ टूट जाती थी…. भौते भल लेखी राखो दाज्यु….. मज एगो मजा
thand to yehan bhi hume kaafi lag rahi hai, lekin pahar ki thund ki baat hi kuch aur thi, khoob yaad dilaya tumne bhi.
काकेश, क्या सदा आँखें भिगाओगे मेरी ? ह्यूं , ध्यो, बजरी बरम्याऊ, ये सब शब्द तो पिताजी बोलते थे । उन्होंने कभी भी माँ से हिन्दी में बात नहीं की । पहाड़, बर्फ, पिताजी, गाँव, कुमाऊँ !
वहाँ तरुण अमेरिका में भट्ट की चुरुक्याणी बना रहा है । मनीष जी चुपके चुपके बिस्वार वाला कापा खा रहे हैं । न जाने कितने कुमाऊँनी हो और मुझे पता भी नहीं ! 🙁
घुघूती बासूती
Great work sir. mujhe bhee narai lag rahee thee yeh sab phad ke.
mujhe ye lekh bhaut hee achha leja. bachpan ki yaad taja ho aie jeb hum log nanital mai rehte tha.yeh bat 1964 tek kee hai fir sadi ke bad dilli aa geie.kabhi kabhi pharh jate tha jab bachhon ki chuttian hoti thi aajkel hum log us mai hai yehan per v khoob bharaf gir rehi hai per pharh ke to batt hee alag hai wo sare nejare yaad aa reha hain sasural mera dwarahat[barti} mai hai baki fir.
nerai huin kee. parh ker maja aa gaya.
thanks.deepa
A great effort indeed.Aias laga jaise koi samne bhaitha ho aur kahani suna raha ho, Dada pahar gaye hue 12 saal ho gaye hai, hyun dekhe to kareeb 20 saal ho gaye ho! lekin aap ne to saare yadain taza kar de,
Thanks A lot
Captain Nandan Bisht
My dear Kakesh, it has refreshed the memories of my childhood when I was in Class V and there was a great snowfall in Ranikhet and banks of GAGAS down the hill around 1969-70. It was so pleasant that inspite of heavy snowfall I went to School with barefoot wearing just a half shirt and half pant to enjoy it with other children. I still cherish that meditating calmness during the snowfall in my heart.
Please accept my Gratulations for this memorable piece of article.
PARU
I M VERY MUCH IMPRESSED SIR, DAJU TUMOR KAHANI TO NANSINA K YAAD DIVE DE AB TO PAHAR K HUN DEKHI BHOTE SAAL HAGIN, YOS KAHANI LIKHTE RAYA DAJU MYOR SHUBHKAMNAYEN TUMAR DAGE CHAN.
काकेश दा,
ह्यूं की नराई पढ़कर याद आये बचपने के वो दिन, जब ह्यूं के कारण स्कूल नहीं जाना होता था, चाख में सगड़ में आग, आग के ऊपर तवे में भट्ट भुने जा रहे होते थे और नीचे राख में दबे होते थे आलू और गिठी……।
फिर नरम ह्यूं को चोरी से खाने की कोशिश करना और फिर बुखार से तपना….।
जै हो आपकी
Jab main Pahar Main thaa Baraf (Hiyu) ko Ghee tatha Chinee ke saath Khaya karta tha. Apki eeja se magkar jab jab main ghee chinee aur hiyu khata thaa chakh se babu datte thae Jab lagegi na thandi tab nakha pochta phirega.
Every year in living at Delhi I missing those Golden Movements.
Mohan Joshi.
bhal lagre pahadi bhasha sun ber……..