परुली….

परुली ही कहते थे सब उसे. लेकिन उसका स्कूल का नाम प्रिया था. प्रिया जोशी.गरीब घर था और फिर लड़कियों को ज्यादा क्यों पढ़ाना… शादी करके घर का काम ही तो करना है.फिर भी परुली उर्फ प्रिया स्कूल जाती थी.उसके बाबू (पिताजी) जिनको सब जोस्ज्यू (जोशी जी) के नाम से ज्यादा जानते थे जजमानी (पंडिताई) करते थे. वो तो तब भी परुली को पढ़ाना चाहते थे लेकिन उसकी ईजा (मां) का मानना था कि ज्यादा से ज्यादा हाईस्कूल कर लेगी तो कोई अच्छा सा लड़का ढूंढ के इसकी शादी कर देंगे.

परुली को खुद का परुली कहा जाना खराब लगता था. स्कूल में सब उसे प्रिया कहते तो उसे बहुत अच्छा लगता था. स्कूल जाने की उसकी इच्छा के पीछे पढ़ने से ज्यादा खुद को प्रिया कहलाये जाने का लालच था.मैडम कुछ भी पूछ्ती तो वह हाथ खड़ा करती और जब मैडम कहती कि “हाँ प्रिया तुम बताओ” तो उसके कानों में जैसे घुंघरू बजते और पूरे जोश के साथ पूछे गये प्रश्न का गलत-सही उत्तर देती.हाँलाकि उत्तर अधिकतर सही ज्यादा होते गलत कम. इसलिये स्कूल में उसकी गिनती होशियारों में होने लगी.

परूली को घर में पढ़ने का बिल्कुल भी समय नहीं मिलता था. उसका स्कूल पांच-छ्ह किलोमीटर दूर था. अब पहाड़ में कोई साधन तो थे नहीं तो पैदल ही आना जाना होता. स्कूल से आते आते उसको भूख लग जाती. आते ही वह बस्ता एक ओर रख देती और घर में ढूंढती कि कहीं कुछ खाने को है क्या. उसका छोटा भाई उससे पहले घर आ जाता था. तो अक्सर यह होता था कि सुबह की बची हुई रोटियां वह खा चुका होता…और परुली के लिये कुछ भी ना बचता.

जब वह आती तो ईजा जंगल गयी होती.कभी घास लाने तो कभी लकड़ी लाने.बाबू जजमानी में गये होते.घर में बड़बाज्यू (दादा) और आमा (दादी) होती और अक्सर बड़बाज्यू के कुछ दोस्त भी साथ होते.उसके एक कका जो बी.ए. कर रहे थे वो भी तब तक कॉलेज से आ जाते थे.परूली के स्कूल से आते ही चाय की फरमाईश होने लगती. “परूली तू आ गयी है….चहा पिला हो सबको”. वो अनमने मन से चहा बनाने जाती. घर में एक बत्ती वाला स्टोव था …”नूतन” स्टोव. उसी को किसी तरह से जलाती और चाय के लिये केतली में पानी रख देती.खाने को कुछ ना होता तो चहा बनाने के बाद अपने लिये थोड़े भट भूट लेती.

स्कूल से आने के बाद कित्ते सारे काम करने होते परुली को.पाखे (छ्त) से कपड़े उठा के लाना.उनको तह करके रखना. गोरु बल्दों के वण (जंगल) से आने के बाद उनको गोठ में बांधना.उनको घास डालना. नौले से पानी लाकर रखना.रात की सब्जी का इनजाम (इंतजाम) करना.कभी कभी ईजा के आने में देर होने पर सब्जी भी छोंक के रखना.आटा ओल के रखना. ईजा वण से आ जाती तो दोनों मिलके खाना बनाते और फिर साथ ही भानकुन (बर्तन) मांजते. तब तक परुली इतनी थक जाती कि उसे नींद आने लगती और वह दिसाण (बिस्तर) में सर रखते ही सो जाती. सुबह उसके बाबू जल्दी जजमानी में जाते तो उसे उठा देते. वह बाबू को चहा बना के देती.बाबू चले जाते तो वह बांकी सबके उठने से पहले कुछ पढ़ पाती और फिर काम में लग जाती.

स्कूल में प्रिया जोशी काफी लोकप्रिय होती जा रही थी. पढ़ाई के साथ साथ वह खेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी आगे रहती. इसीलिये वह अपनी सारी मैडमों की लाड़ली थी.इस साल उसका हाईस्कूल का बोर्ड था.जितना भी समय उसे मिलता वह मन लगा कर पढ़ती. आज उसकी मैडम ने उससे कहा. प्रिया तुम अपनी बायलॉजी और स्ट्रॉंग करो.आगे भी बायलॉजी ही लेना और कोशिश करना पी.एम.टी. क्लियर करने की ताकि तुम डॉक्टर बन सको. यह सुन कर प्रिया को बहुत अच्छा लगा.उसको लगा कि जल्दी ही वह प्रिया से डा. प्रिया जोशी बन जायेगी. वह जल्दी से जल्दी यह बात अपनी ईजा को बताना चाहती थी.

घर आके परुली फिर उसी तरह काम में जुट गयी.डाक्टर वाली बात अभी भी उसके मन में थी. लेकिन ईजा के वण से आने के बाद उसे एकांत मिला ही नहीं कि वह अपनी बात ईजा को बता पाती.भनपान करने (बर्तन मांजने) के बाद वह अभी दिसाण लगा ही रही थी और सोच रही थी कि अभी ईजा आयेगी तो उसको अपनी दिल की बात कहेगी उसको अपनी बाबू की आवाज सुनायी दी. ईजा-बाबू आपस में बात कर रहे थे. उनकी बातों में अपना नाम सुनकर वह बाबू की बात ध्यान से सुनने लगी.

“आज मलगाड़ के पांडे ज्यू मिले थे. कह रहे थे कि परुली का चिन्ह (कुंडली) दे देना गोपाल के लिये.” गोपाल पांडे ज्यू का लड़का था.

“हाँ हो तो भोल (कल) ले जाना. पांडे ज्यू का संबंध तो अच्छा ठहरा. साम्य (कुंडली मिल गयी तो) हो गया तो भल हो जायेगा….”

“हाँ ये लोग तो बैरती के पांडे हुए..संबंध तो अच्छा ही हुआ..लेकिन अभी परूली तो नान नानि (छोटी) ही हुई.”

“तुम्हें तो नान नानि ही लगेगी..ढांट सी तो बड़ी हो गयी है.. इस साल बोर्ड भी हो जायेगा…फिर मंगसीर तक ब्या कर देंगे.तुम तो ले जाओ हो भोल चिन्ह”

“लेकिन गोपाल की कुछ खास नौकरी चाकरी तो है नहीं…”

“क्या करता है…?”

” पांडे ज्यू बता रहे थे कि दिल्ली में किसी ठुल (बड़े) अफसर के बंगले में नौकर है. क्वाटर भी मिला है.”

” अरे तो ठीक ही तो हुआ… इतना अच्छा संबंध मिल रहा है.. नौकरी का क्या है..यह नहीं तो कोई और मिल जायेगी…”

“तुम तो चिन्ह ले जाओ..और साम्य हो जाये तो बात पक्की कर दो हो”

इससे आगे क्या बातें हो रही थी वह परुली ने नहीं सुनी. वह चुपचाप तकिये पर सर रखकर सो गयी.

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

34 comments

  1. ये जोस्ज्यू (जोशी जी) वाली सोच काफी खतरनाक है सतही तौर पर बदलाव के दावे किए जाते है और किए जा सकते है लेकिन वास्तविकता अब भी चिंता का विषय है.

  2. इंतजार रहेगा!!
    वैसे बनना चाहिए डॉक्टर परूली को।
    ग्रामीण ही नही कमोबेश शहरी इलाकों में आज भी हकीकतन यही हाल है, लड़की जहां 12वीं पहुंची नही कि चिंता शुरु।

  3. लोग इंतजार करने और आगे का जानने की बात कह रहे हैं। ऐसा है क्या कुछ? क्या सिर्फ इस आशा पर कि काकेश बहुधा धारावाहिक चलाते हैं – सो यहां भी कुछ विलक्षण होगा?

  4. काकेश, अच्छी कहानी है पहाड़ में ना जाने ऐसी कितनी परूली और ऐसे ही कितने गोपाल हैं, आगे का इंतजार रहेगा

  5. Kakesh ji,
    hakikat hai lakin hum koshish kare ki hamare aas pass kisi paruli ke sath aisa no ho.

  6. kakesh bhai…bahut achcha likha hai, ab dekhna yah hai ki paruli Dr. Priya banti hai ki nahi…let’s wait!!

    kiran

  7. मेरी आँखे नम हैं… “प्रिया” जैसे जाने कितनों का दर्द लिखा है आपने…
    काकेश दा आपसे विनती है… प्रिया को तो डॉक्टर ही बना दो यार…

  8. शायद परूली की मा जैसी सोच की औरतो की वजह से हमारा पहाण इतना पाछे है
    मेरे खयाल से परुली आगे पढ पाती तो शायद…

    Naveen Pathak

  9. Kakesh Ji, superb efforts to thow light on the plight of girls/women of Uttaranchal. However, so far as the name is concerned, ‘Parulee’ seems more appropriate than ‘Priya’ in relation to Uttaranchal. The ‘ee’, e.g., Parulee, Sarulee, Debulee, Chanulee etc. were used by the pure ‘Aryans’. My dear late grandmother used to call me ‘Paru’ instead of ‘Prakash’. If I would have been in my native – Uttaranchal, I would have preferedd ‘Paru’ NOT PRAKASH.

    Anyway, the socio-economic factors is truely reflected in the Story of Uttaranchal which is the core factor.

    With great regards,

    Yours PC Joshi, Delhi
    ‘PARU’ UTTARANCHAL

  10. मुझे लगता है कि गोपाल से चिह्न साम्य नहीं हो पायेगा…. ‘नाडीभेद’ भी हो सकता है. इस तरह के अभावों से जूझते हुए बिरले ही तो नाम कमा पाते हैं दुनिया में.प्रिया से कुछ उम्मीदें बंधने लगी हैं. काकेश जी, इस कहानी को लेकर बहुत उत्सुकता हो रही है… क्या होगा “ब्रेक” के बाद? एक हफ्ते का अन्तराल बहुत लम्बा है… क्या इसे हफ्ते में दो दिन कर सकते हैं?

  11. Dear Sh.Kakesh,

    Good story, think of our community which live in villages. But now some change is comming …very slowly.

    I think Paruli (Priya) will be doctor after clearing obtacle like economy status.

    Ramesh

  12. thats a bitter true. mujhe toh padkar hee boora lag raha hai.. lekin jinke saath aisa reality main hota hoga kya gujarti hogi unper.

  13. आज पहली बार आयी हूँ आपके यहाँ (ब्लॉग पर) और आते ही मुझे कुतुहल हो रहा है परुली के बारे में अधिक से अधिक, जल्दी से जल्दी जानू कि क्या कुछ हो रहा है उसकी जिंदगी में…

  14. काकेश, बैरती के पाँडे !
    यह गाना सुना है , ‘ना ना बोलौरी झन दीया बौज्यू , लागणा बिलौरी का घाँवा .
    लागणा बिलौरी का घाँवा ओ बौज्यू,लागणा बिलौरी का घाँवा .’
    यहाँ बिलौरी को बैरती करके परुली गा सकती है ।
    ना जाने कितनी परुलियाँ बिलौरी व बैरती की भैंट चढ़ गईं ।
    घुघूती बासूती

  15. Hi Kakesh

    Please finish the story… wake Paruli up and make her a doctor …

    very touching.

    Hemanshu

  16. Kakeshji,
    Bahut achchha laga pad kar. Par aapne ye jo ‘Lal Batti-wala Stove’ ya ‘nutan stove’ ki baat kahi, kuchh at-pa-ti-si lagi. Gaon mai, jis samay ka aap kissa suna rahe hai, tab stove batti wala, kinhi paise walon ke paas hota tha. Agar iski jagah aap ‘chul pan’ ya ‘rishya mai’ use karte to shayad sabda jyada dil ko touch karti.
    Please don’t take it as a negetive critisim. I am a big fan of yours. Keep it up and continue to compel us to remember something which was there down in our memory lane. Regards

    Prakash
    New Delhi

    [काकेश : धन्यवाद,प्रकाश जी आपने इतने ध्यान से कहानी पढ़ी. मैं जिस पारुली की बात कर रहा हूँ वह बहुत पुरानी नही है..आज से 22-23 बरस पहले की ही है….तब सुबह-शाम के खाने के लिए तो चूल्हा जलता ही था…लेकिन दिन की चाय नूतन स्टोव में या अंगीठी में ही बनती थी. दिन मैं तो चूल्हा नही जलाया जा सकता ना 🙂

    यह पारुली पूरी तरह काल्पनिक नही है. यह हमारे आस पास की ही है. आप पढ़ते रहे और इस तरह के सुझाव देते रहे तो अच्छा लगेगा.]

  17. Hi,
    Good afternoon to Mr Kakesh Ji its a very interesting story please continue it.

    Thanks & Regards
    Harish Sati
    Fortune Institute of International Business
    Plot No 5, Rao Tula Ram Marg
    Vasant gaon, New Delhi 110057
    Email- harshsati@yahoo.co.in
    Mobile – 999******* (काकेश द्वारा एडिट किया गया)
    Website- http://www.fiibindia.com

  18. namashkaar kakesh daju, ke baat hage naaraz hagecha , roj tumor kahaani dhundhnu, milne nhe, ab kahani likhna band kar diye kya? pls reply.

  19. इस कहानी ने मुझे बरबस स्व मनोहर श्याम जोशी जी और पंकज बिष्ट जी के लेखन की याद दिला दी। उत्सुक हुँ जानने के लिये कि क्या होगा परुली का। ये देखेंगे अगले हफ़्ते हम लोग।

  20. Best please continue it……………….Paruli name is similar to me ………make her doctor..as a girl i struggled lot for my carier

  21. काकेश जी इस कहानि को पढ कर बचपन की यद आ गयी ऐसा ही इसतोब हमारे पास भी था कभी मैं भी चहा बना लेता था परुली की ईजा जौसे सोच के लोग अभी भी बहुत है हमारे पहाड मैं।

  22. ek karua sach jo pahaad ki durdasha bayaan karta hai…..or mann ko jhakjhor diya …karmas ..kahani ko aage bhi likhe bahut acchi hai ..pahaad ki ek soch ko bayaan karti hai eska agla bhag jaldi padne ko milega asha me

  23. Kakesh ji paruli ki story ne mughe apane bachapan ki yad dila di. paruly kafi mahenati lady hai is liye wah doctor jarur banegi.

  24. ab chahtey to hum bhi hai ki paruli apney naam ke aagey Dr. jaroor lagaye—-parntu—Prisththi—viprit hoti hai padad ki–likheytey huey bhi ankhey chalchala utathi hai—- Garibi hai bajondi ghar maku rand ni din—Pirya bhi shyad iski bhet ched jayegi

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