कानपुर हॉस्टल में मेरे एक कवि मित्र हुआ करते थे.मित्र तो अभी भी हैं लेकिन उनसे मेरी मुलाकात पिछ्ले 12-13 सालों से नहीं हुई है.एक दिन अचानक उनका फोन आया और फोन करते ही बोले “काकेश भाई”. हम सोचे कि कोई ब्लॉगर मित्र ही होगा. वरना खाकसार को कौन याद करता है इस नाम से.पता चला कि हमारे पुराने मित्र हैं और यहीं इसी शहर में रह रहे हैं.कहीं से उनको हमारा नम्बर मिला और उन्होने हमें फोन कर लिया.
अब इन मित्र की क्या तारीफ करूँ. हॉस्टल के जमाने से मैं इनकी कविताओं का मुरीद रहा हूँ.कई दिनों से मैं इन्हें ढूंढ भी रहा था. इसी लिये एक बार फुरसतिया जी को ई-पत्र भी लिखा था.लेकिन इनका पता नहीं लग पाया.अब पता चला कि ये यहीं दिल्ली में हैं तो तुरत अपने ब्लॉग का पता दिया. ताकि एक पाठक तो और बढ़े वरना अपन को तो गिने चुने लोग ही पढ़ते हैं. इन्होने पढ़ा और तुरंत अपनी छाप छोड़ी कविता के माध्यम से. इनके बारे में एक बात और बता दूँ कि इनके पास तब ( अब पता नहीं) कविताओं का भरपूर स्टॉक रहता था. हर अवसर पर एक कविता तैयार रहती थी. मैं यदि कभी मंच संचालन कर रहा होता तो इनकी एक आध कविता जरूर सुनाता.किसी एक फेयरवेल में इनकी कविता जो लाइने मैने सुनायी थी वो मुझे अभी भी याद हैं.
आदमी की ज़िन्दगी है, ज़ुगनुओं की रोशनी
कौन जाने कब यह नूर गुल हो जायेगा
हम नहीं होंगे ना होंगे आप लेकिन
याद में अपनी यह वक्त फिर फिर आयेगा.
खैर ये हमारे ब्लॉग पर आये और रोमन में अपनी कविताई छाप छोड़ गये. जो इस प्रकार थी.
नराई के बहाने सिर्फ नराई वाले लेख पर यह बोले.
पत्र तुम्हारा नेह संस्करण लगता है…
पंक्ति पंक्ति पीयुष प्रेम का बहता है
शब्द शब्द संबोधित करता प्रानों को
अक्षर अक्षर हाल तुम्हारा कहता है.
और हमारे एक व्य़ंग्य पर इनका कहना था.
भाई वाह! आप तो सचमुच कमाल करते हो
लफ़्जों को छूरी जैसे इस्तेमाल करते हो
हास्य के हाथों व्यवस्था के रुग्ण चेहरे पर
अश्क अर्थों के, व्यंग्य के रुमाल रखते हो.
अब हम इनके पीछे पड़ गये कि भाई अपना ब्लॉग बनाओ. ताकि फिर से इनकी कविताओं का स्वाद चख सकें.इनकी ना नुकुर चलती रही. इनको कंप्यूटर में हिन्दी लिखने की समस्या थी. उसके लिये इन्हे पूरा प्रोसीजर भी भेजा. फोन पे भी तकादा चलता रहा. फिर थक हार के इन्होने एक और कविता हमें भेजी इस आशय की कि ये ब्लॉग नहीं लिख पायेंगे.
नशे मे प्यार के रहने की है आदत तुमको,
बहक तो हमको ही जाना है ,तुम ना साथ चलो.
मैं तो अनजान था दुनियाँ की नज़र में अब तक,
जानता तुमको ज़माना है, तुम ना साथ चलो.
दिल में आबाद था जो दर्द-ए-गुलिश्तां कब से,
नज़र आ जाएगा सबको कि, तुम ना साथ चलो.
इतनी सुन्दर कविता पढ़ने के बाद तो लगा कि ये सारी कविताओं से हम वंचित क्यों रहें. और तुक्का देखिये एक तो कनपुरिया ऊपर से पांडे.लेकिन हम भी कहाँ मानने वाले थे. पीछे पड़े रहे. हारकर उन्हें ब्लॉग बनाना ही पड़ा. तो आप भी उन्हें पढिये और उनसे गुजारिश करिये कि वो नियमित लिखते रहें ताकि हम सभी उनकी कविताओं का आनन्द ले सकें.
उनका ब्लॉग है “मेरा निर्झर”. अभी तो मात्र दो कविताऎं चिपकायी हैं लेकिन शीघ्र ही और भी लिखेंगे ऎसा कहना है उनका.
ब्लागॅर दुनिया में आपका योगदान सराहनीय है। इसी प्रकार ब्लागॅर दुनिया की जनसंख्या में वृध्दि करते रहो। मेरी शुभकामनाएं आपक साथ हैं।
पाड़े और कविता ठेलक। आ.पु. की भाषा में कहें तो भौत डेंजरस।
बहुत अच्छे। पांडे जी खोज के ब्लाग दुनिया में घुसा देने के लिये बधाई! पांड़ेजी का झरना बहता रहे। 🙂
एक हिन्दी चिट्ठाकार तो और बढ़ा 🙂
मैं तो कह ही रहा हूँ कि आप लोगों की बिरादरी बड़ रही है, स्वागत है पांडे जी का। काकेश भाई सबका एक ही हाल है आपको तो तब भी कुछ लोग मिल जाते हैं, हम तो एक-आध के साथ आपके लिये भी तरसते रहते हैं 😉
पांडे जी का स्वागत। ब्लाग पर बिछड़ा मिलन कार्यक्रम अच्छा
ब्लोगरी के इतिहास मी “काकेश भाई” का नाम स्वर्णिम अक्षरों मे लिखा जायेगा. आपका योगदान अमूल्य है . मैं तो इसे इसे देखता हूँ की एक पाठक और मिला मुझे. अभी जाता हूँ उनके ब्लॉग पर और जबरदस्त टिपियता हूँ.
काकेश भाई,
पाण्डेय जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद…हम सब पाण्डेय जी की कवितायें सुने और कुछ गुने, यही आशा है….
झक्कास भई और लाइये पांडेजी सरीखे धांसू च फांसू लोग। इस वैराइटी के लोग कितने कम हो गये हैं ना।
पाण्डेय जी से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया!!
इधर से खिसकते है उनके ब्लॉग पर!!
पांडे से परिचय के लिए धन्यवाद।
आपने इनका शुभ नाम नहीं बताया, उनके ब्लॉग पर पता नहीं चलता।
चलिए जी आपके कहने पर हमने भी कर दिया स्वागत
इन्हें कहें कि लिखे वरना घोषित कर दी जाएंगे तथागत
पान्डे जी का स्वागत