(आज फिर से व्यंग्य लिख रहा हूँ.मधुशाला की दुकान कोई खास चल नहीं रही.इससे पहले कि बाकि बचे ग्राहक भी लौट कर चले जायें और हमें दुकान समेटनी पड़े हमने सोचा कि चलो फिर से अपनी ऑकात पे आ ही जाते हैं.) बच्चू सिंह जो कल तक मुँह उठाये घूम रहे थे आज मुँह छुपाये… Continue reading लौट के सैंया घर को आये…
Author: काकेश
मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...
खैयाम की रुबाइयाँ रघुवंश गुप्त की क़लम से
[कुछ पाठकों ने मेल भेज कर कहा कि मैं ‘उमर खैयाम’ के जीवन-वृत के बारे में विस्तार से लिखुं. तो उन सभी सुधी पाठकों से कहना चाहुंगा कि ‘उमर’ के बारे में नैट पर पहले से ही बहुत जानकारी उपलब्ध है.हाँलाकि अधिकतर जानकारी अंग्रेजी में है फिर भी उसी जानकारी का अनुवाद कर यहां पेश… Continue reading खैयाम की रुबाइयाँ रघुवंश गुप्त की क़लम से
मैथिलीशरण गुप्त का अनुवाद
जैसा कि बताया जा चुका है कि मैथिलीशरण गुप्त और रघुवंश गुप्त दोनो ने उमर की रुबाइयों का हिन्दी अनुवाद किया था. आइये पहले मैथिलीशरण गुप्त के अनुवाद की चर्चा करें. गुप्त जी अपनी भूमिका में लिखते हैं कि उन्हें उमर की रुबाइयों का हिन्दी अनुवाद करने के लिये राय कृष्णदास जी ने प्रेरित किया… Continue reading मैथिलीशरण गुप्त का अनुवाद
प्रिंट में छ्पते चिट्ठाकार
प्रिंट मीडिया में आजकल हिन्दी चिट्ठाकारिता की बहुत धूम है.हाल ही में बालेन्दु जी का कादम्बिनी में छ्पा लेख तो आपने पढ़ा ही होगा. कथादेश में भी अविनाश जी का हिन्दी चिट्ठाजगत पर एक लेख हर माह छ्पता रहता है.समकाल में भी ऎसा ही लेख छ्पा था.कई ऎसे भी चिट्ठाकार हैं जिनके लेख भी पत्रिकाओं… Continue reading प्रिंट में छ्पते चिट्ठाकार
उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में
5. कुछ प्रमुख अनुवादों की चर्चा पिछ्ले अंक में हमने रुबाइयों के कुछ हिन्दी अनुवादों की चर्चा की. आज कुछ और अनुवादों की चर्चा करते हैं. हिन्दी के अलावा विश्व की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में उमर की रुबाइयों के अनुवाद हो चुके हैं. जिनमें जर्मन, रशियन, अफ्रिकन, इटेलियन, डच, थाइ, अल्बेनियन भाषा शामिल हैं.… Continue reading उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में
मधुशाला में विराम..टिप्पणी चर्चा के लिये
मधुशाला के निर्धारित क्रम को तोड़ते हुए आइये एक चर्चा करे पिछ्ले लेखों में हुई टिप्पणीयों पर.कुछ बहुत ही अच्छी टिप्पणीयां आयी जिंन्होने सोचने पर भी बाध्य किया और आगे लिखने के लिये प्रेरित भी. सबसे पहले राकेश जी का धन्यवाद जिन्होने डिजिटल लाइब्रेरी का पता बताया और मैं मैथिलीशरण गुप्त जी की पुस्तक को… Continue reading मधुशाला में विराम..टिप्पणी चर्चा के लिये
हुल्लड़ जी की रचना:शिव कुमार जी द्वारा.
मेरी पिछ्ली पोस्ट पर शिव कुमार जी ने एक बेहतरीन हास्य रचना टिपियायी.कहीं वो छुप ना जाये इसलिये उसे पोस्ट में भी डाल रहा हूँ.लेकिन पहले एक बोनस रचना.ये भी शायद हुल्लड़ जी की ही है. सुबह सबेरे ही देखा था,लेकिन सपना भंग हो गयाप्रेम पत्र पर टिकट लगाया,फिर भी वह बैरंग हो गया.जिसको लिखना… Continue reading हुल्लड़ जी की रचना:शिव कुमार जी द्वारा.
एक व्यंग्य पुस्तक का विमोचन
पिछ्ले दिनों एक कार्यक्रम में जाना हुआ. वो कार्यक्रम एक किताब के विमोचन के अवसर पर रखा गया था. किताब चुंकि व्यंग्य संग्रह थी इसलिये तमाम व्यंग्यकारों को भी दावत दी गयी थी.दावत दी गयी थी मैने इसलिये लिखा कि छपे हुए निमंत्रण पत्र में नीचे हाथ से लिखा था कि कार्यक्रम के बाद आप… Continue reading एक व्यंग्य पुस्तक का विमोचन
उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद..
पिछ्ले लेख में आपने उमर खैयाम और उनकी प्रसिद्ध रुबाईयों के बारे में जाना.अब आगे पढिये. 3. रुबाइयों के अंग्रेजी अनुवाद: उमर खैय्याम की रुबाइयों के कई अंग्रेजी अनुवाद हुए.लेकिन इन सभी अनुवादों में जो सर्वप्रमुख और सर्वप्रसिद्ध अनुवाद है वो है जॉन फिट्जराल्ड का. जॉन का पहला अनुवाद सन 1859 में आया उसके बाद… Continue reading उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद..
खैयाम की मधुशाला..
मधुशाला शब्द सुनते ही मस्तिष्क में एक ही नाम उभरता है और वो नाम है श्री हरिवंश राय बच्चन का. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चन की मधुशाला मूलत: पारसी भाषा की रचना से प्रेरित है और मूल रचना का रचनाकाल बच्चन की मधुशाला से आठ सौ वर्ष पहले का है. जी हाँ! बच्चन… Continue reading खैयाम की मधुशाला..