माशूक के होंठ

[किबला की दुकान तो चल गयी लेकिन अचानक उन्हे पाकिस्तान जाना पड़ा. फिर देखिये आगे क्या क्या हुआ.] माशूक के होंठ अब के दुकान चली और ऐसी चली कि औरों ही को नहीं स्वयं उन्हें भी आश्चर्य हुआ। दुकान के बाहर उसी शिकार की जगह यानी केबिन में उसी ठस्से से गाव तकिये की टेक… Continue reading माशूक के होंठ

टार्जन की वापसी

किबला के जेल जाने से मानवीय संवेदनाऎं किबला के पक्ष में हैं. ज्ञान जी ने भी कहा कि अब किबला का दुख देखा नहीं जाता. लेकिन किबला इसे दुख माने तब ना.किबला तो जेल में मस्त हैं. दो साल की सजा हुई है. सब सोच रहे हैं कि अब शायद किबला बदल जायेंगे. हो सकता… Continue reading टार्जन की वापसी

अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट

पड़ौस के पहलवान दुकान की टांग तोड़कर किबला जेल में थे. सब को चिंता थी कि किबला को कहीं जेल ना हो जाये लेकिन किबला हमेशा की तरह बेखबर थे.वो अपनी सजा को कम करवाने के लिये किसी की सिफारिस को भी तैयार ना थे. किबला की इसी मर्दानगी को खोया पानी में बखूबी वर्णित… Continue reading अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट

हूँ तो सज़ा का पात्र, पर इल्ज़ाम ग़लत है

अगड़म बगड़म वाले आलोक जी ने टिप्पणी की “ये सच्चे अर्थों में अद्भभुत उपन्यास है। इसकी कई परतें हैंजी, जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार नयी खुलेंगी। व्यंग्यकार सच्ची में क्या होता है. कितना पढ़ा लिखा होता है, कित्ता बड़ा आबजर्वर होता है., ये मसले इस उपन्यास को पढ़कर खुलते हैं।दरअसल यह किताब हास्य-व्यंग्य की टेक्स्टबुकों… Continue reading हूँ तो सज़ा का पात्र, पर इल्ज़ाम ग़लत है

कटखने बिलाव के गले में घंटी

ज्ञान जी बोले “भैया, यह बताना कि यूसुफी जी ने यह लिखने में कितना समय लिया था। हमें तो इस छाप का सोचने में इतना समय लगे कि उम्र निकल जाये!” . सच जब से मैने यह उपन्यास पढ़ना शुरु किया कुछ इसी तरह के विचार मेरे दिल में भी आये थे.संजीत जी ने कहा… Continue reading कटखने बिलाव के गले में घंटी

इम्पोर्टेड बुज़ुर्ग और यूनानी नाक

[ “खोया पानी” उस व्यंग्य उपन्यास का नाम है जो पाकिस्तान के मशहूर व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद यूसुफी की किताब आबे-गुम का हिन्दी अनुवाद है. इस पुस्तक के अनुवाद कर्ता है ‘लफ़्ज’ पत्रिका के संपादक श्री ‘तुफैल चतुर्वेदी’ जी.  इस उपन्यास की टैग लाइन है “एक अद्भुत व्यंग्य उपन्यास” जो इस उपन्यास पर सटीक बैठती है.इसी… Continue reading इम्पोर्टेड बुज़ुर्ग और यूनानी नाक

वो तिरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है

[ कोठे की कहानियां तो अभी आनी बांकी हैं.एक से बढ़कर एक कहानियां हैं जो आप आगे के हिस्सों में पढेंगे.अभी तो हम हवेली में ही अटके हुए हैं. किबला को अपनी हवेली से कितना प्यार था कि वो अपनी हवेली को महल से कम नहीं समझते थे. किबला की बहादुरी का परिचय भी आप… Continue reading वो तिरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है

हवेली की हवाबाजी

[ किबला की बहादुरी का परिचय आप देख चुके हैं कि कैसे उन्होने अपनी सलीम शाही जूती की छाप से कराची में एक घर हथियाया था. किबला की कानपुर में एक हवेली भी हुआ करती थी. हवेली क्या थी सोचें की किबला के लिये एक महल था.किबला की ना जाने कितनी यादें उससे जुड़ीं थीं.… Continue reading हवेली की हवाबाजी

हवेली की पीड़ा कराची में

[किसी भी अच्छे व्यंग्य में करुणा का पुट लिये यथार्थ की झलक भी होती है.खोया पानी में भी यह प्रचुर मात्रा में है लेकिन यह करुणा ऎसी है जो हास्य से ही उपजती है. युसूफी साहब भी बीच बीच में कड़वा यथार्थ लेकर आये हैं जो हास्य की चाशनी में लिपटा हुआ है. आइये आज… Continue reading हवेली की पीड़ा कराची में

कांसे की लुटिया,बाली उमरिया और चुग्गी दाढ़ी़

[ पिछ्ले अंको में में आपने किबला का मजेदार परिचय और उनकी लकड़ी की दुकान के बारे में पढ़ा. जिसमें आप उनके चरित्र के बहाने उस समय की स्थितियों से भी परिचित हुए. ज्ञान जी ने टिप्पणी करते हुए कहा “यह तो वास्तव में व्यंग का मुरब्बा है। आंवले को सिझा कर कोंच कोंच कर… Continue reading कांसे की लुटिया,बाली उमरिया और चुग्गी दाढ़ी़