एक घोड़ा भरेगा कितने पेट ?
जिस दिन से दाढ़ी वाले मौलाना नियुक्त हुए, रहीमबख़्श हर चौथे-पांचवें दिन आ के सर पे खड़ा हो जाता। “चंदा दीजिये।“ परन्तु ढाई – तीन रुपये या अधिक-से-अधिक पांच में आयी बला टल जाती। उससे जिरह की तो पता चला कि कराची में तांगे अब केवल इसी इलाक़े में चलते हैं। तांगे वालों का हाल घोड़ों से भी खराब है। उन्होंने पुलिस और ‘‘अत्याचार’’ वालों का नाम-मात्र को महीना बांध रखा है, जो उनकी गुजर बसर के लिये बिल्कुल अपर्याप्त है। उधर नंगे, भूखे गधा गाड़ी वाले मकरानी सर फाड़ने पर उतर आते हैं। घायल गधा, पसीने में तर-ब-तर गधागाड़ी वाला और फटे हाल ‘‘अत्याचार’’ का इंस्पेक्टर। यह निर्णय करना मुश्किल था कि इनमें कौन अधिक बदहाल और जुल्म का शिकार है। यह तो ऐसा ही था जैसे एक सूखी-भूखी जोंक, दूसरी सूखी-भूखी ज़ोंक का ख़ून पीना चाहे। नतीजा यह कि ‘‘अत्याचार वाले’’ तड़के ही इकलौती मोटी आसामी यानी उनके तांगे की प्रतीक्षा में गली के नुक्कड़ पे खड़े हो जाते और अपने पैसे खरे करके चल देते। अकेला घोड़ा सारे स्टाफ़ के बाल-बच्चों का पेट पाल रहा था। लेकिन करामत हुसैन (दाढ़ी वाले मौलाना का यही नाम था) का मामला कुछ अलग था। वो अपने हुलिये और फटे-हाल होने के कारण ऐसे दिखायी पड़ते थे कि लगता था उन्हें रिश्वत देना पुण्य का काम है और वो रिश्वत लेकर वास्तव में रिश्वत देने वाले को पुण्य कमाने का अवसर प्रदान कर रहे हैं। वो रिश्वत मांगते भी ऐसे थे जैसे दान मांग रहे हों। ऐसा प्रतीत होता था कि उनके भाग का सारा अन्न घोड़े की लंगड़ी टांग के माध्यम से ही उतरता है। ऐसे फटीचर रिश्वत लेने वाले के लिये उनके भीतर न कोई सहानुभूति थी न डर।
कुत्तों के चाल चलन की चौकीदारी
दोस्तों ने सलाह दी कि घोड़े को इंजेक्शन से ठिकाने लगवा दो, लेकिन उनका मन नहीं मानता था। क़िबला तो सुनते ही रुआंसे हो गये। कहने लगे आज लंगड़े घोड़े की बारी है, कल अपाहिज बाप की होगी। शरीफ़ घरानों में आयी हुई दुल्हन और जानवर तो मर कर ही निकलते हैं। वो स्वयं तीन दुल्हनों के जनाज़े निकाल चुके थे, इसलिये घोड़े के बारे में भी ठीक ही कहते होंगे। रहीम बख़्श भी घोड़े की हत्या कराने का कड़ा विरोध करता था। जैसे ही बात चलती, अपना तीस वर्ष के अनुभव बताने बैठ जाता। यह तो हमने भी सुना था कि इतिहास अस्ल में बड़े लोगों की बायोग्राफ़ी है परंतु रहीमबख़्श कोचवान की सारी आटोबायोग्राफ़ी दरअस्ल घोड़ों की बायोग्राफ़ी थी। उसके जीवन से एक घोड़ा पूरी तरह निकल नहीं पाता था कि दूसरा आ जाता। कहता था कि उसके तीन पूर्व-मालिकों ने ‘‘वैट’’ से घोड़ों को जहर के इंजेक्शन लगवाये थे। पहला मालिक तीन दिन के भीतर चटपट हो गया। दूसरे का चेहरा लक़वे से ऐसा टेढ़ा हुआ कि दायीं बांछ कान की लौ से जा मिली। एक दिन ग़लती से आईने में ख़ुद पर नजर पड़ी तो घिग्घी बंध गयी। तीसरे की पत्नी जॅाकी के साथ भाग गई। देखा जाये तो इन तीनों में-जो तुरंत मर गया, उसीका अंत सम्मानजनक मालूम होता है।
उन्हीं दिनों एक साईस ने सूचना दी कि लड़काना में एक घोड़ी तेलिया कुमैत बिलकुल मुफ़्त यानी तीन सौ रुपये में मिल रही है। बस वडेरे के दिल से उतर गई है। गन्ने की फ़स्ल की आमदनी से उसने गन्ने ही से लम्बाई नाप कर एक अमरीकी कार ख़रीद ली है। आपकी सूरत पसंद आ गई तो हो सकता है मुफ़्त ही दे दे। इसका विरोध पहले हमने और बाद में क़िबला ने किया। उन दिनों कुत्ते पालने का नया-नया शौक़ हुआ था। हर बात उन्हीं के संदर्भ में करते थे। कुत्तों के लिये अचानक मन में इतना आदर-भाव पैदा हो गया था कि कुतिया को मादा-कुत्ता कहने लगे थे।
हमने बिशारत को समझाया कि ख़ुदा के लिये मादा घोड़ा न ख़रीदो। आमिल कालोनी में दस्तगीर साहब ने एक मादा-कुत्ता पाल लिया है। किसी शुभचिंतक ने उन्हें सलाह दी थी कि जिस घर में कुत्ते हों, वहां फ़रिश्ते, बुजुर्ग और चोर नहीं आते। उस जालिम ने यह न बताया कि फिर सिर्फ़ कुत्ते ही आते हैं। अब सारे शहर के बालिग़ कुत्ते उनकी कोठी का घेराव करे पड़े रहते हैं। शहजादी स्वयं शत्रु से मिली हुई है।
ऐसी तनदाता नहीं देखी। जो ब्वॅाय स्काउट का ‘‘मोटो’’ है-वही उसका-Be Prepared-मतलब यह कि हर आक्रमणकारी से सहयोग के लिये पूरे तन-मन से तैयार रहती है। फाटक खोलना असंभव हो गया है। महिलाओं ने घर से निकलना छोड़ दिया। पुरुष स्टूल रखकर फाटक और कुत्ते फलांगते हैं। दस्तगीर साहब इन कुत्तों को दोनों वक़्त नियमित रूप से खाना डलवाते हैं, ताकि आने-जाने वालों की पिंडलियों से अपना पेट न भरें। एक बार खाने में जहर डलवा कर भी देख लिया। गली में मुर्दा कुत्तों के ढेर लग गये। अपने ख़र्च पर उनको दफ़्न किया। एक साहब का पालतू कुत्ता जो बुरी संगत में पड़ गया था, उस रात घर वालों की नजर बचा कर सैर-तमाशे को चला आया था, वो भी वहीं खेत रहा। इन चंद कुत्तों के मरने से जो रिक्त-स्थान पैदा हुआ, वो इसी प्रकार पूरा हुआ जैसा साहित्य और राजनीति में होता है। हम तो इतना जानते हैं कि स्वयं को Indispensable समझने वालों के मरने से जो रिक्त-स्थान पैदा होता है, वह वास्तव में केवल दो गज जमीन में होता है, जो उन्हीं के पार्थिव शरीर से उसी समय पूरा हो जाता है। ख़ैर! यह एक अलग क़िस्सा है। कहना यह था कि अब दस्तगीर साहब सख़्त परेशान हैं। ख़ानदानी मादा है। नीच जात के कुत्तों से वंशावली बिगड़ने का डर है। मैंने तो दस्तगीर साहब से कहा था कि इनका ध्यान बंटाने के लिये कोई मामूली जात की कुतिया रख लीजिये ताकि कम-से-कम यह धड़का तो न रहे, रातों की नींद तो हराम न हो। इतिहास में आप पहले व्यक्ति हैं जिसने कुत्तों के चाल-चलन की चौकीदारी का बीड़ा उठाया है।
जारी………………[अब यह श्रंखला प्रत्येक शुक्रवार/शनिवार और रविवार को प्रस्तुत की जा रही है.]
[उपन्यास खोयापानी की तीसरे भाग “स्कूल मास्टर का ख़्वाब से " ]
किताब डाक से मंगाने का पता:
किताब- खोया पानी
लेखक- मुश्ताक अहमद यूसुफी
उर्दू से हिंदी में अनुवाद- ‘तुफैल’ चतुर्वेदी
प्रकाशक, मुद्रक- लफ्ज पी -12 नर्मदा मार्ग
सेक्टर 11, नोएडा-201301
मोबाइल-09810387857
पेज -350 (हार्डबाऊंड)
कीमत-200 रुपये मात्र
इस भाग की पिछली कड़ियां
1. हमारे सपनों का सच 2. क़िस्सा खिलौना टूटने से पहले का 3. घोड़े को अब घोड़ी ही उतार सकती है 4. सवारी हो तो घोड़े की 5. जब आदमी अपनी नजर में गिर जाये 6. अलाहदीन अष्टम 7. शेरे की नीयत और बकरी की अक़्ल में फ़ितूर 8.महात्मा बुद्ध बिहारी थे 9.घोड़े का इलाज जादू से
पढ़ते जा रहे हैं खोया पानी. और कोई रास्ता भी नहीं है. दिल्ली के एक मित्र गिफ्ट देने वाले थे यह पुस्तक हमें मगर मिले तो नहीं दिये. अब यहीं पढ़ रहे हैं. जारी रहें.
“चंद कुत्तों के मरने से जो रिक्त-स्थान पैदा हुआ, वो इसी प्रकार पूरा हुआ जैसा साहित्य और राजनीति में होता है। ”
बहुत खूब.
आप् वास्तव मे एक रत्न से परिचय करवा रहे है.
क्या जबरदस्त उपन्यास है ये.
बहुत-बहुत बधाई.
वैसे प्रभो आजकल आप् हो कंहा?
कंही कोई कुतिया तो नहीं पाल ली आपने भी?
समझ मे नही आ रहा कि धोडे के बचने पर टिपियाये या कुत्तो की असामयिक मौत पर राष्ट्र का वाहन मौन रखने के लिये करे 🙂
वाहन को आवाहन पढे
क्या मध्य वर्ग है – अपने चालचलन पर कोई वर्जना नहीं, कुतिया के चालचलन पर बन्दिशें!
खैर पोस्ट के मुताबिक लहरदार टिप्पणी न होने के लिये खेद!
कभी कभी डीरेल्ड टिप्पणी भी चलती है!
“दोस्तों ने सलाह दी कि घोड़े को इंजेक्शन से ठिकाने लगवा दो, लेकिन उनका मन नहीं मानता था। क़िबला तो सुनते ही रुआंसे हो गये। कहने लगे आज लंगड़े घोड़े की बारी है, कल अपाहिज बाप की होगी।”
भावुक कर गई…………….
ऐसे किस्तों मे मन नही भरता,एक ही बार मे पूरी किताब पढ़नी पड़ेगी.