हमारे सपनों का सच

बच्चे के लिये उसके खिलौने से अधिक ठोस और अस्ल हक़ीक़त पूरे ब्रह्मांड में कुछ और नहीं हो सकती। सपना, चाहे वह आधी रात का सपना हो या जागते में देखा जाने वाला सपना हो, देखा जा रहा होता है तो वही और केवल वही उस क्षण की एकमात्र वास्तविकता होती है। यह टूटा खिलौना, यह आंसुओं में भीगी पतंग और उलझी डोर, जिस पर अभी इतनी मार-कुटाई हुई, यह जलता-बुझता जुगनू, यह तना हुआ ग़ुब्बारा जो अगले पल रबड़ के लिजलिजे टुकड़ों में बदल जायेगा, मेरी हथेली पर सरसराती यह मखमली बीरबहूटी, आवाज की रफ़्तार से भी तेज चलने वाली यह माचिस की डिब्बियों की रेलगाड़ी, यह साबुन का बुलबुला-जिसमें मेरा सांस थर्रा रहा है, इंद्रधनुष पर यह परियों का रथ-जिसे तितलियां खींच रही हैं इस पल, इस क्षण बस यही और केवल यही हक़ीक़त है।

चोरी हो तो ऐसी

ये कौन हज़रते-‘आतिश’ का हम जबां निकला इसमें कोई शक नहीं कि सागर जालौनवी के कई शेर बड़े दमपुख्त निकलते थे. कुछ शेर तो वाकई ऐसे थे कि “मीर” और “आतिश” भी उन पर गर्व करते,जिसका एक कारण यह भी था कि ये खुद उन्ही के थे. खुद को एक विद्यार्थी और अपनी शायरी को… Continue reading चोरी हो तो ऐसी

कई पुश्तों की नालायकी का निचोड़

कई पुश्तों की नालायकी का निचोड़ ये शायर जो भूचाल लाया बल्कि जिसने मुशायरा अपनी मूंछों पर उठा लिया, बिशारत का ख़ानसामा निकला. पुरानी टोपी और उतरन की अचकन का तोहफ़ा उसे पिछ्ली ईद पर मिला था. राह चलतों को पकड़-पकड़ के अपना कलाम फ़रमाता. सुनने वाला दाद देता तो उसे खींच कर लिपटा लेता,… Continue reading कई पुश्तों की नालायकी का निचोड़

और मुशायरा लुट गया

तो ख़ुदा आपका भला करे और मुझे माफ करे… मूलगंज रंडियों का चकला था।उस जमाने में भी लोगों का चाल-चलन इतना ही ख़राब था,जितना अब है। मगर निगाह अभी उतनी ख़राब नहीं हुई थी कि तवायफ़ों को बस्ती को आजकल की तरह ‘बाजारे हुस्न’ कहने लगें। चकले को चकला ही कहते थे। दुनिया में कहीं… Continue reading और मुशायरा लुट गया

मूलगंज: तवायफों का जिक्र

मूलगंज का जिक्र ऊपर की पंक्तियों और कानपुर से संबंधित दूसरे चित्रों में जगह-जगह बल्कि जगह-बेजगह आया है। इस मुहल्ले में तवायफें रहती थी। ये विशारत का पसंदीदा विषय है,जिससे हमारे पाठक पूरी तरह से परिचित हो चुके होंगे।हांलाकि बिना संदेह के वे दूसरे ग्रुप के आदमी हैं।

तवायफ़ के किस्से

बात साठ-सत्तर साल पुरानी लगती है , मगर आज भी उतनी ही सच है। अलग-अलग तबक़ों के लोग तवायफ़ को ज़लील औए नफ़रत के क़ाबिल समझते थे, मगर साथ ही साथ उसकी चर्चा और चिंतन में एक लज़्ज़त महसूस किये बिना नहीं रहते थे। समाज और तवायफ़ में सुधार के बहाने उसकी ज़िन्दगी की तस्वीर बनाने में उनकी प्यास की संतुष्टि हो जाती थी।

मुशायरे की तैयारी

शेर मुशायरे में सुनने-सुनाने की चीज नहीं। एकान्त में पढ़ने, समझने, सुनने और सहने की चीज है। शायरी किताब की शक्ल में हो तो लोग शायर का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मैं ‘मीर’ की किताब से एक-दो नहीं, सौ-दो सौ शेर ऐसे निकाल कर दिखा सकता हूं जो वो किसी मुशायरे में पढ़ देते तो इज्जत और पगड़ी ही नहीं, सर भी सलामत नहीं रहता।

इक्के का आविष्कार घोड़े ने किया

निहारी, रसावल, जली और धुआं लगी खीर, मुहावरे, सावन के पकवान, अमराइयों में झूले, दाल, रेशमी दुलाई, ग़रारे, दोपल्ली टोपी, आल्हा-ऊदल और जबान के शेर की तरह इक्का भी यू. पी. की ख़ास चीजों में गिना जाता है। हमारा ख़याल है कि इक्के का अविष्कार किसी घोड़े ने किया होगा, इसीलिये इसके डिजाइन में इस… Continue reading इक्के का आविष्कार घोड़े ने किया

शायरों की खातिरदारी

आज का अंश बिशारत द्वारा की जा रही मुशायरे की तैयारी से संबंधित है. इसमें हास्य के ऐसे नमूने हैं जो आपको निश्चय ही हँसने पर मजबूर कर देंगे. तो लीजिये प्रस्तुत है अगला भाग.

कुत्ते की तारीफ और मुशायरा

वो रिश्वत की दूध जलेबी खा-खा कर इतना मोटा और काहिल हो गया था कि सिर्फ़ दुम हिलाता था। भोंकने में उसे आलस आने लगा था। पहले तो कुत्ते की जात है और फिर इसे तो ऐसी ट्रेनिंग दी गई है कि सिर्फ़ शरीफ़ों को काटता है।