राजा साहब का थोबड़ा टी.वी. में.

चिट्ठाजगत चिप्पीयाँ: हास्य व्यंग्य नये युग के बच्चे अब नये तरीके सीखना चाहते हैं.उन्हे अब पुराने तरीको से कोई मतलब नहीं.नये युग के कुछ बच्चों को इतिहास पढ़ाना चाह रहा था.ताकि वो भी समझे कि उनके पूर्वजों ने कितने कितने त्याग किये.कितने दिन सुनहले होते होते रह गये और रातें काली हो गयी.लेकिन बच्चों की… Continue reading राजा साहब का थोबड़ा टी.वी. में.

लंगी लगाने की विशुद्ध भारतीय कला

नेतागिरी स्कूल में भर्ती होने वाले कुछ दुहारू (दूसरों को दूहने में माहिर) छात्रों की परीक्षा चल रही थी.वहां के प्रश्नपत्र में आये निबंध पर एक मेघावी और भावी इतिहास पुरुष छात्र का निबंध. लंगी लगाना भारतीय मूल की प्रमुख कला है.लंगी लगाना यानि किसी बनते बनते काम को लास्ट मूमेंट में रोक देना.जैसे आप… Continue reading लंगी लगाने की विशुद्ध भारतीय कला

रंगबाजी का रंग बच्चों के संग

एक मास्साब क्लास में बच्चों को रंगो के बारे में पढ़ा रहे थे.उन्होने मास्साबों की चिर परिचित इस्टाईल में पूछा कि “बच्चो रंगो के बारे में तुम लोग क्या जानते हो? “.अब हमारे जमाने के बच्चे होते तो चुप होकर नीचे देखने लगते कि कहीं मास्साब से नजर मिली और उन्होने उठा कर पूछ लिया तो… Continue reading रंगबाजी का रंग बच्चों के संग

यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

कल जब मित्र समीरलाल जी ने “मोटों की महिमा” छापी तो अपने मोटापे पर आती जाती शरम फिर गायब हो गयी और एक पुरानी पढी कविता याद आ गयी.. लीजिये कविता प्रस्तुत है… आराम करो आराम करो एक मित्र मिले, बोले, “लाला, तुम किस चक्की का खाते हो? इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी… Continue reading यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

पंगेबाज वापस !!

ये तो आपको मालूम ही है कि हिन्दी ब्लॉग की दुनिया के एकमात्र पंगेबाज ने 6 जुलाई को संन्यास लेने की घोषणा की थी.ये एक बड़ी घटना थी कम से कम उन लोगों के लिये जो पंगेबाज के पंगों से परिचित थे.हर एक ब्लॉगर से पंगे लेने वाला बन्दा  ऎसा कैसे कर सकता है.हमने तुरंत… Continue reading पंगेबाज वापस !!

धड़-धड़-धड़-धड़, बम बम बम बम…..

कल आपकी टिप्पणीयों से कुछ तो साहस मिला कि कुछ भी लिखें पर लिखना चाहिये…वैसे मेरा भी मानना यही रहा है कि किसी भी चीज को छोड़ के भागने की प्रवृति ठीक नहीं है ..इसलिये अभी पंगेबाज जी को भी मनाने में लगे हैं कि वो भी वापस आ ही जायें… देखिये मान जायें तो… Continue reading धड़-धड़-धड़-धड़, बम बम बम बम…..

क्रांतिकारी की कथा : हरिशंकर परसाई

आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में क्रांति का माहोल है,हाँलाकि कुछ लोगों का मानना है कि चिट्ठे क्रांति नहीं ला सकते…पर फिर भी कोशिश जारी है.कुछ लोग जन्मजात क्रांतिकारी होते है और कुछ लोग किताबें पढ़कर क्रांतिकारी हो जाते हैं.आज आपके सामने हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य प्रस्तुत है.जो एक “क्रांतिकारी की कथा” है. इसमें “चे-ग्वेवारा” का… Continue reading क्रांतिकारी की कथा : हरिशंकर परसाई

नारद जी : हम भी थे लाईन में…!!

बहुत हो गया.अब लगता है ज्यादा चुप नहीं बैठा जायेगा.साथी लोग उकसा रहे हैं… भय्या काहे चुप बैठे हो कुछ तो बोले …कोई तो पक्ष लो…कह रहे हैं… चारों ओर हल्ला गुल्ला है और तुम चुपचाप बैठे हो.यह सब सुन कर बचपन की एक घटना याद आ गयी.एक बार बंदरों का झुंड हमारे मोहल्ले में… Continue reading नारद जी : हम भी थे लाईन में…!!

अरे वाह हम भी लिंक्ड हुई गवा…

कल प्रमोद दद्दा पूछे कि “आप लिंक्ड है कि नहीं” हम सोचे ई का हो गया ….दद्दा सकाले सकाले का पूछ रहे हैं …वो भी सार्वजनिक रूप से . अब हम कैसे बतायें कि हम लिंक्ड है कि नहीं..वो भी सबके सामने…..घर में एक अदद बीबी भी है ना…. फिर जब पोस्ट में पढ़े तो… Continue reading अरे वाह हम भी लिंक्ड हुई गवा…

चने की झाड़ पर ..घोड़े ..और चिट्ठाकार !

आज बात करते हैं हिन्दी के कुछ चिट्ठाकारों के साथ हुए मेरे अनुभवों की .. कल लंच के समय बाहर निकला ही थी कि हिन्दी के एक चिट्ठाकार मिल गये.टीका-वीका लगाये थे और इतनी गर्मी में भी फ्रैश फ्रैश लग रहे थे … रिलांयस फ्रैश की तरह….लगता था जैसे अभी अभी हिल स्टेशन घूम के… Continue reading चने की झाड़ पर ..घोड़े ..और चिट्ठाकार !