ख़ोया पानी 2: चारपाई का चकल्लस

[पिछले अंक में आपने किबला का मजेदार परिचय पढा. “खोया पानी” उस व्यंग्य उपन्यास का नाम है जो पाकिस्तान के मशहूर व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद यूसुफी की किताब आबे-गुम का हिन्दी अनुवाद है. इस पुस्तक के अनुवाद कर्ता है ‘लफ़्ज’ पत्रिका के संपादक श्री ‘तुफैल चतुर्वेदी’ जी. इस उपन्यास की टैग लाइन है “एक अद्भुत व्यंग्य… Continue reading ख़ोया पानी 2: चारपाई का चकल्लस

खोया पानी-1:क़िबला का परिचय

[“खोया पानी” यह है उस व्यंग्य उपन्यास का नाम जो पाकिस्तान के मशहूर व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद यूसुफी की किताब आबे-गुम का हिन्दी अनुवाद है. इस पुस्तक के अनुवाद कर्ता है ‘लफ़्ज’ पत्रिका के संपादक श्री ‘तुफैल चतुर्वेदी’ जी. पुस्तक क्या है हास्य का पटाख़ा है और इतना महीन व्य़ंग्य की आपके समझ आ जाये तो… Continue reading खोया पानी-1:क़िबला का परिचय

नराई ठंड की …

[पहाड़ की ठंड का अपना एक अलग ही आनन्द है. इस आनन्द को वही महसूस कर सकता है जिसने इसको जिया है,एक टूरिस्ट की भांति एक-दो दिन के लिये नहीं बल्कि कई दिनों तक. उस पर से पहाड़ी भाषा,जो मूल रूप से कुमांउनी या गढ़वाली बोली के रूप में जानी जाती है,उसकी अपनी अलग ही… Continue reading नराई ठंड की …

‘लफ़्ज़’,तुफैल जी और ‘खोया पानी’

कुछ दिनों पहले मैने आपके सामने “खोया-पानी” नामक व्यंग्य उपन्यास का जिक्र किया था. फुरसतिया जी ने बताया कि यह उपन्यास उन्होने भी मँगवा लिया है. उन्होने इसे नैट पर डालने की इच्छा भी जताई. जब से मैने इस उपन्यास को पढ़ना शुरु किया है तब से मेरी भी यही इच्छा थी.मुझे आप सबको यह… Continue reading ‘लफ़्ज़’,तुफैल जी और ‘खोया पानी’

क्या ये सारे चिट्ठे चिट्ठाजगत.इन से हटाये जायेंगे?

अभी अभी चिट्ठाजगत डॉट इन की आचार संहिता पढ़ी. मेरे विचार से हर संस्था को ये हक है कि वो अपनी आचार संहिता बनाये. ये उस संस्था से जुड़े लोगों को सोचना है कि वो उस आचार संहिता को माने या ना मानें. चिट्ठाकारी या ब्लॉगिंग एक अलग तरह का माध्यम है जिसका चरित्र ही… Continue reading क्या ये सारे चिट्ठे चिट्ठाजगत.इन से हटाये जायेंगे?

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लोग “ashok pande” को क्यों खोज रहे हैं

अशोक पांडे जी कबाड़खाने के कर्ताधर्ता कबाड़ी हैं. जाने कहाँ कहाँ से कबाड़ उठा के ले आते हैं और पटक देते हैं.एक दिन इसी कबाड़खाने में हम पहुंचे तो हम भी इस दुकान के हिस्सेदार बन गये.यहाँ तक तो ठीक था. लेकिन देखते क्या हैं पिछ्ले कुछ दिनों से हमारे ब्लॉग पर जो लोग सर्च… Continue reading लोग “ashok pande” को क्यों खोज रहे हैं

एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी

आज जब अनिल जी ने अपनी पोस्ट लिखी तो मुझे लता जी का गाया एक बंगाली गाना याद आ गया. ” एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी”. यह गाना जब पहली बार सुना था तो बहुत कुछ समझ में नहीं आया था लेकिन फिर भी आंखों में आंसू थे. उसके बाद तो यह गाना… Continue reading एक बार बिदाई दे माँ घूरे आशी

कम्यूनिज्म और मैं

आजकल ब्लॉगजगत में कम्यूनिज्म पर बहस जोरों पर है. कोई इसे बाल विवाह से जोड़ रहा है तो कोई तलाक से.इसी बहाने आज कुत्ताज्ञान ब्रह्मज्ञान भी मिल गया. 🙂 मैं जब कम्यूनिज्म पर कुछ पढ़ता हूँ या फिर किसी के मुँह से कुछ सुनता हूँ तो कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं होता.… Continue reading कम्यूनिज्म और मैं

आलोक जी-9-2-11 वालों के लिये

आलोक जी-9-2-11 के बारे में दो चीजें सबको मालूम ही होंगी. एक कि वो अक्सर टेलीग्राफिक पोस्ट लिखते हैं और दूसरा वो कहीं भी गलत हिन्दी देखते हैं तो टोक जरूर देते हैं. लेकिन आज सुबह से उनका एक और रूप सामने आ रहा है.आपने भी नोट किया हो. वो रूप है एक सफल टिप्पणीकार… Continue reading आलोक जी-9-2-11 वालों के लिये

नगई महरा: अंतिम भाग

समीर जी का उत्साह बढ़ाने में कोई सानी नहीं. कल की पोस्ट पर उन्होने एक अच्छी सी टिप्पणी की जिससे फिर से ऊर्जा मिली कि बांकी भाग को भी टाइप कर आप तक पहुंचाऊं. थक गये हैं, थोड़ा विश्राम प्राप्त करें मित्र. कार्य इतना उत्तम हैं कि यह कह पाना संभव नहीं कि थक गये… Continue reading नगई महरा: अंतिम भाग