पुराने शब्दों की तलाश में…वाया अजदक

[ये पोस्ट अजदक की पोस्ट से प्रेरित है..] पुराने टॉर्च पर नये सैल लगा के टटोलता टटोलता आगे बढ़ने की कोशिश करता रहा.जंगल तो नहीं था पर माहौल जंगल जैसा ही था… घुप्प अन्धेरा … सांय सांय बोलता सन्नाटा. दिन में हुई बारिस से जमीन भी गीली थी.पेड़ो से बीच बीच में गिरती बूंदें ..टप… Continue reading पुराने शब्दों की तलाश में…वाया अजदक

पंगेबाज वापस !!

ये तो आपको मालूम ही है कि हिन्दी ब्लॉग की दुनिया के एकमात्र पंगेबाज ने 6 जुलाई को संन्यास लेने की घोषणा की थी.ये एक बड़ी घटना थी कम से कम उन लोगों के लिये जो पंगेबाज के पंगों से परिचित थे.हर एक ब्लॉगर से पंगे लेने वाला बन्दा  ऎसा कैसे कर सकता है.हमने तुरंत… Continue reading पंगेबाज वापस !!

धड़-धड़-धड़-धड़, बम बम बम बम…..

कल आपकी टिप्पणीयों से कुछ तो साहस मिला कि कुछ भी लिखें पर लिखना चाहिये…वैसे मेरा भी मानना यही रहा है कि किसी भी चीज को छोड़ के भागने की प्रवृति ठीक नहीं है ..इसलिये अभी पंगेबाज जी को भी मनाने में लगे हैं कि वो भी वापस आ ही जायें… देखिये मान जायें तो… Continue reading धड़-धड़-धड़-धड़, बम बम बम बम…..

कुछ ऊलजलूल…

पिछ्ले कुछ दिनों से दिल्ली से बाहर था..इस शोर शराबे,भीड़ भड़ाके से दूर.. शांत पहाड़ की वादियों में. एक वरिष्ठ चिट्ठाकार ने भी वादा किया था कि वे जुलाई के प्रथम सप्ताह में मेरे साथ पहाड़ आयेंगे उसी हिसाब से सारा कार्यक्रम बनाया था पर फिर वो नहीं आये..फिर मैं ही अपने परिवार को लेके… Continue reading कुछ ऊलजलूल…

समूहबद्धता और जातिवाद…

पिछ्ले लेख पर ज्यादा प्रतिक्रियाऎं तो नहीं आयी लेकिन जो  भी आयीं उन्होने कुछ नये प्रश्न खड़े कर दिये.प्रमोद जी बोले यह दिल्‍ली ही नहीं, मुंबई- कमोबेश किसी भी बड़े भारतीय शहर की अंदरूनी डायरी है. इस अनुभव से नतीजा क्‍या निकलता है? एक तो वह जिसे आप समूहबद्धता की सहूलियत का सीधा, आसान-सा नाम… Continue reading समूहबद्धता और जातिवाद…

अहमदाबाद और दिल्ली का जातिवाद ? ..

पहले रवीश जी की पोस्ट आयी अहमदाबाद के जातिवाद के बारे में.पढ़कर बहुत आश्चर्य हुआ. अब रवीश जी जैसा सम्मानित पत्रकार जब स्पेशल रिपोर्ट कर रहा है तो फिर शक की गुंजाइस तो थी नहीं फिर भी मन नहीं माना.अपने एक मित्र से संपर्क किया जो अहमदाबाद में रहे हैं तो उन्होने  भी इस तरह… Continue reading अहमदाबाद और दिल्ली का जातिवाद ? ..

क्रांतिकारी की कथा : हरिशंकर परसाई

आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में क्रांति का माहोल है,हाँलाकि कुछ लोगों का मानना है कि चिट्ठे क्रांति नहीं ला सकते…पर फिर भी कोशिश जारी है.कुछ लोग जन्मजात क्रांतिकारी होते है और कुछ लोग किताबें पढ़कर क्रांतिकारी हो जाते हैं.आज आपके सामने हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य प्रस्तुत है.जो एक “क्रांतिकारी की कथा” है. इसमें “चे-ग्वेवारा” का… Continue reading क्रांतिकारी की कथा : हरिशंकर परसाई

नारद जी : हम भी थे लाईन में…!!

बहुत हो गया.अब लगता है ज्यादा चुप नहीं बैठा जायेगा.साथी लोग उकसा रहे हैं… भय्या काहे चुप बैठे हो कुछ तो बोले …कोई तो पक्ष लो…कह रहे हैं… चारों ओर हल्ला गुल्ला है और तुम चुपचाप बैठे हो.यह सब सुन कर बचपन की एक घटना याद आ गयी.एक बार बंदरों का झुंड हमारे मोहल्ले में… Continue reading नारद जी : हम भी थे लाईन में…!!

मन रे तू काहे ना ….!!

मन जब उद्विग्न हो तो ना जाने क्या क्या सोचने लगता है.रोटी और पैसे के सवालों से जूझना जीवन की सतत आकांक्षा है पर उसके अलावा भी तो हम हैं..क्या सिर्फ रोटी पैसा और मकान ही चाहिये जीने के लिये…यदि वो सब मिल गया तो फिर क्या करें??? …कैसे जियें? क्या इतना काफी है जीने… Continue reading मन रे तू काहे ना ….!!

आइये अभय जी समझें “व्यंग्य” को…

अभय जी ने कहा कि “ काकेश जी.. आपके व्यंग्य बाण की राह हम देख रहे हैं” .. जी नहीं आज व्यंग्य की विधा में बात नहीं करुंगा .. थोड़ी गंभीर बात करनी है …और दिन में कभी कभी तो मैं गंभीर बात करता ही हूँ… अभय जी ने आज अपनी पोस्ट में कहा कि… Continue reading आइये अभय जी समझें “व्यंग्य” को…