मौलवी मज्जन से तानाशाह तक

कभी अपने बुजुर्ग या बॉस या अपने से अधिक बदमाश आदमी को सही रास्ता बताने की कोशिश न करना। उन्हें ग़लत राह पर देखो तो तीन ज्ञानी बंदरों की तरह अंधे, बहरे और गूंगे बन जाओ!

नेकचलनी का साइनबोर्ड

समझ में न आया कि नेकचलनी का क्या सुबूत हो सकता है, बदचलनी का अलबत्ता हो सकता है। उदाहरण के लिये चालान,मुचलका, गिरफ़्तारी-वारंट, सजा के आदेश की नक़्ल या थाने में दस-नम्बरी बदमाशों की लिस्ट।पांच मिनट में आदमी बदचलनी तो कर सकता है नेकचलनी का सुबूत नहीं दे सकता।

चयनम् : क्या साहित्य विफल है ?

साहित्य क्रांति नहीं करता; वह मनुष्यों के दिमाग़ बदलता और उन्हें क्रांति की ज़रूरत के प्रति जागरूक बनाता है.

परुली: चिन्ह साम्य होगा क्या ??

अरे पढ़ लिख के क्या बैरिस्टर बनेगी. ब्या तो तब भी होगा ना और फिर तो वही भनपान, गोरु-बाछों का मोव निकलना, गुपटाले पाथना, पानी सारना और घरपन के सारे काम, इन सब में तेरी पढ़ाई क्या काम आयेगी रे परुली..और अच्छे रिश्तो के लिये मना नहीं करना चाहिये

दलित-विमर्श और हम

उनकी बहस का मतलब होता था कि जो वह बोल रहे हैं उसी की हाँ में हाँ मिलाओ, नहीं तो वह अपने किसी संपादक की तरह आपको गाली देने में भी पीछे नहीं हटते थे…और दूसरे मैं अपने आप को किसी भी बहस के उपयुक्त मानता भी नहीं हूँ क्योंकि बहस के लिये जिस बुद्धि,तर्क,कुतर्क, नीचपने,चाटुकारिता और चंपुओं की फौज की जरूरत होती है वो मेरे पास नहीं है.

स्वामी जी का चिंतन

जो प्रशन आप उठाये रहिन वैसे तो ऊ बहुतैई बड़ा प्रशन है. ऊ पर तो कभी लिखबो करेंगे. अभी तो तो इतनो ही कहनो है कि इस प्रशन को सुनके तो गोस्वामी तुलसीदास जी भी घबरा गये.

किस सड़क को चुनुं मैं….

ज्ञान जी ने अपनी पोस्ट में राबर्ट फ्रोस्ट की एक कविता का जिक्र किया. रॉबर्ट फ्रॉस्ट की एक कविता मुझे भी बहुत प्रिय है. इसे टिप्पणी में ही चिपकाना चाह रहा था पर वहाँ टिप्पणी नहीं जा रही इसलिये इसे पोस्ट में ही दे रहा हूँ. इसका हिन्दी अनुवाद किसी के पास हो तो बतायें.… Continue reading किस सड़क को चुनुं मैं….

पास हुआ तो क्या हुआ

बेइज्जती के जितने प्रचुर अवसर हमारे यहां हैं दुनिया में कहीं और नहीं। नौकरी पेशा आदमी बेइज्जती को प्रोफ़ेशनल हेजर्ड समझ कर स्वीकार करता है।

फ़ेल होने के फायदे

फ़ेल होने पर सिर्फ एक दिन आदमी की बेइज्जती खराब होती है इसके बाद चैन ही चैन।