[किबला की दुकान तो चल गयी लेकिन अचानक उन्हे पाकिस्तान जाना पड़ा. फिर देखिये आगे क्या क्या हुआ.] माशूक के होंठ अब के दुकान चली और ऐसी चली कि औरों ही को नहीं स्वयं उन्हें भी आश्चर्य हुआ। दुकान के बाहर उसी शिकार की जगह यानी केबिन में उसी ठस्से से गाव तकिये की टेक… Continue reading माशूक के होंठ
Author: काकेश
मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...
असहमति के बहाने
आज सुबह जब पोस्ट लिखी (सुबह सुबह चार बजे उठ कर) तो यह अन्दाजा नहीं था कि यह एक बहस का रूप ले लेगी.हाँलाकि मंशा तो थी ही कि एक बहस हो. लेकिन आशा के विपरीत लोग आये और उन्होने बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने विचार लिखे. कुछ लोगों ने जहाँ मेरी सोच से सहमति… Continue reading असहमति के बहाने
बिन अंग्रेजी सब सून
पिछली पोस्ट से शायद यह लगा कि मैं कोई हिन्दी-अंग्रेजी विवाद उत्पन्न करना चाहता हूँ जो कि बकौल ज्ञान जी हिन्दी वालों का प्रिय शगल रहा है. लेकिन मेरा लक्ष्य यह नहीं था.मैं तो अपने अनुभव आपसे बांटना चाहता था.मैं अग्रेजी का विरोध नहीं करता बल्कि मैं तो अंग्रेजी की वकालत करता हूँ और कहता… Continue reading बिन अंग्रेजी सब सून
टार्जन की वापसी
किबला के जेल जाने से मानवीय संवेदनाऎं किबला के पक्ष में हैं. ज्ञान जी ने भी कहा कि अब किबला का दुख देखा नहीं जाता. लेकिन किबला इसे दुख माने तब ना.किबला तो जेल में मस्त हैं. दो साल की सजा हुई है. सब सोच रहे हैं कि अब शायद किबला बदल जायेंगे. हो सकता… Continue reading टार्जन की वापसी
अंग्रेजी व हीन भावना
जब मैने पिछ्ला लेख लिखा था तब कोई इरादा नहीं था कि मैं कोई विवाद खड़ा करूं लेकिन ना जाने कुछ लोगों को वो पोस्ट विवादगर्भा लगी. खैर जाने दीजिये आप तो मेरी कहानी सुनिये जिसका वादा मैने अपनी पोस्ट में किया था. बचपन से अंग्रेजी ना जानना आपको कदम कदम पर परेशान करता है.… Continue reading अंग्रेजी व हीन भावना
सागर भाई की उलझन और रचना जी की माफी
मेरी पिछ्ली पोस्ट पर काफी अच्छे कॉमेंट आये.सागर जी और रचना जी के कॉमेंट प्रस्तुत हैं. सागर भाईसा बोले काकेश जी , इस लेख में तो विषयांतर हुआ कोई बात नहीं पर इस लेख की अगली कड़ी में उसे भी पूरा करें। क्यों कि मुझे यह लग रहा है कि आप मेरी कहानी लिख रहे… Continue reading सागर भाई की उलझन और रचना जी की माफी
भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी क्यों नहीं है??
आप को लग रहा होगा कि मैं क्या बकवास कर रहा हूँ…. हिन्दी चिट्ठा लिखता हूँ लेकिन अंग्रेजी की वकालत कर रहा हूँ. लेकिन नहीं जी … मैं ऎसा सोच समझ कर कह रहा हूँ. कारण है कि हमारे महान देश भारत में कोई भी काम अंग्रेजी के बिना नहीं होता. किसी भी प्राइवेट कंपनी… Continue reading भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी क्यों नहीं है??
अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट
पड़ौस के पहलवान दुकान की टांग तोड़कर किबला जेल में थे. सब को चिंता थी कि किबला को कहीं जेल ना हो जाये लेकिन किबला हमेशा की तरह बेखबर थे.वो अपनी सजा को कम करवाने के लिये किसी की सिफारिस को भी तैयार ना थे. किबला की इसी मर्दानगी को खोया पानी में बखूबी वर्णित… Continue reading अंतिम समय और जूं का ब्लड टैस्ट
हूँ तो सज़ा का पात्र, पर इल्ज़ाम ग़लत है
अगड़म बगड़म वाले आलोक जी ने टिप्पणी की “ये सच्चे अर्थों में अद्भभुत उपन्यास है। इसकी कई परतें हैंजी, जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार नयी खुलेंगी। व्यंग्यकार सच्ची में क्या होता है. कितना पढ़ा लिखा होता है, कित्ता बड़ा आबजर्वर होता है., ये मसले इस उपन्यास को पढ़कर खुलते हैं।दरअसल यह किताब हास्य-व्यंग्य की टेक्स्टबुकों… Continue reading हूँ तो सज़ा का पात्र, पर इल्ज़ाम ग़लत है
स्वागत करें एक कनपुरिया पांडे जी का
कानपुर हॉस्टल में मेरे एक कवि मित्र हुआ करते थे.मित्र तो अभी भी हैं लेकिन उनसे मेरी मुलाकात पिछ्ले 12-13 सालों से नहीं हुई है.एक दिन अचानक उनका फोन आया और फोन करते ही बोले “काकेश भाई”. हम सोचे कि कोई ब्लॉगर मित्र ही होगा. वरना खाकसार को कौन याद करता है इस नाम से.पता… Continue reading स्वागत करें एक कनपुरिया पांडे जी का